"महाभारत शान्ति पर्व" श्रेणी में पृष्ठ इस श्रेणी में निम्नलिखित 200 पृष्ठ हैं, कुल पृष्ठ 1,400 (पिछले 200) (अगले 200)अ अज्ञान और लोभ को ही समस्त दोषों का कारण सिद्ध करना अध्यात्म ज्ञान और उसके फल का वर्णन अध्यात्म व अधिभूत वर्णन तथा राजस और तामस के भावों के लक्षण अध्यात्मज्ञान का निरूपण अन्त में युधिष्ठिर का निर्णय अभक्ष्य वस्तुओं का वर्णन अरिष्टनेमि का राजा सगर को मोक्षविषयक उपदेश अर्जुन का इंद्र और ऋषि बालकों के संवाद का वर्णन अर्जुन का युधिष्ठिर के मत का निराकरण करना अर्जुन द्वारा राज राजदण्ड की महत्ता का वर्णन अश्मा ऋषि एवं जनक के संवाद द्वारा व्यास द्वारा युधिष्ठिर को समझाना अहिंसापूर्वक राज्यशासन की श्रेष्ठता का कथनआ आकाश से अन्य चार स्थूल भूतों की उत्पत्ति का वर्णन आकाशवाणी की प्रेरणा से जाजलि का तुलाधार वैश्य के पास जाना आजगर वृत्ति की प्रशंसा का वर्णन आत्मतत्त्व और बुद्धि आदि पदार्थों का विवेचन आत्मा व परमात्मा के साक्षात्कार का उपाय तथा महत्त्व आपत्काल में धर्म का निश्चय आपत्ति के समय राजा का धर्म आपत्तिकाल में ब्राह्मण के लिए वैश्यवृत्ति से निर्वाह करने की छूट आपत्तिग्रस्त राजा के कर्त्तव्य का वर्णन आश्रम धर्म का वर्णन आसक्ति छोड़कर सनातन ब्रह्म की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करने के उपदेशइ इंद्र और प्रह्लाद का संवाद इन्द्र और अम्बरीष के संवाद में नदी और यज्ञ के रूपों का वर्णन इन्द्र और नमुचि का संवाद इन्द्र और प्रह्लाद की कथा इन्द्र और लक्ष्मी का संवाद इन्द्र और वृत्रासुर के युद्ध का वर्णन इन्द्र और वृहस्पति के संवाद में मधुर वचन बोलने का महत्व इन्द्र के आक्षेप युक्त वचनों का बलि के द्वारा कठोर प्रत्युत्तर इन्द्ररूपधारी विष्णु और मान्धाता का संवाद इन्द्रियों में मन की प्रधानता का प्रतिदान इन्द्रोत का जनमेजय को धर्मोपदेश देना इन्द्रोत का जनमेजय को शरण देना इन्द्रोत मुनि का जनमेजय को फटकारनाउ उतथ्य का मान्धाता को उपदेश उतथ्य के उपदेश में धर्माचरण का महत्व उत्तम ब्राह्मणों के सेवन का आदेश उत्तम-अधम ब्राह्मणों के साथ राजा का बर्ताव उशना का चरित्र उशना को शुक्र नाम की प्राप्तिऋ ऋत्विजों के लक्षण ऋषभ का सुमित्र को वीरद्युम्न व तनु मुनि का वृतान्त सुनाना ऋषभ के उपदेश से सुमित्र का आशा को त्याग देनाक कबूतर द्वारा अतिथि-सत्कार और अपने शरीर का बहेलिये के लिए परित्याग कबूतर द्वारा अपनी भार्या का गुणगान व पतिव्रता स्त्री की प्रशंसा कबूतरी का कबूतर से शरणागत व्याध की सेवा के लिए प्रार्थना कबूतरी का विलाप और अग्नि में प्रवेश कर उन दोनों को स्वर्गलोक की प्राप्ति कर्ण की मदद से दुर्योधन द्वारा कलिंगराज कन्या का अपहरण कर्ण के बल और पराक्रम से प्रसन्न होकर जरासंध का उसे अंगदेश का राजा बनाना कर्ण को ब्रह्मास्त्र की प्राप्ति और परशुराम का शाप कर्म और ज्ञान का अन्तर कर्मफल की अनिवार्यता कर्मफल से लाभ कर्मो का और सदाचार का वर्णन कर्मों को करने और न करने का विवेचन काम, क्रोध आदि दोषों का निरूपण व नाश का उपाय कामरूपी अद्भुत वृक्ष व शरीर रूपी नगर का वर्णन काल और प्रारब्ध की महिमा का वर्णन कालकवृक्षीय मुनि का उपख्यान कालकवृक्षीय मुनि का विदेहराज तथा कोसलराजकुमारों का मेल कराना कालकवृक्षीय मुनि के द्वारा गये हुए राज्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न उपायों का वर्णन काश्यप ब्राह्मण और इन्द्र का संवाद कुटुम्बीजनों में दलबंदी होने पर कुल के प्रधान पुरुष के कार्य कुत्ते का शरभ की योनि से महर्षि के शाप से पुन: कुत्ता हो जाना कृतघ्न गौतम की कथा का आरम्भ क आगे. कृतघ्न गौतम द्वारा राजधर्मा का वध केकयराजा की श्रेष्ठता का विस्तृत वर्णन केकयराजा तथा राक्षस का उपख्यान क्षत्रिय धर्म की प्रशंसा करते हुए अर्जुन पुन: युधिष्ठिर को समझाना क्षर-अक्षर एवं प्रकृति-पुरुष के विषय में राजा जनक की शंकाख खड्ग की उत्पत्ति और प्राप्ति व महिमा का वर्णनग गणतन्त्र राज्य का वर्णन और उसकी नीति गार्हस्थ्य-धर्म का वर्णन गुणातीत ब्रह्म की प्राप्ति का उपाय गुप्त सलाह सुनने के अधिकारी और अनधिकारी तथा गुप्त-मन्त्रणा की विधि एवं निर्देश गुरुजनों की सेवा से लाभ गौतम का अपने मित्र बक के वध का विचार मन में लाना गौतम का आतिथ्यसत्कार व विरूपाक्ष के भवन में प्रवेश गौतम का राक्षसराज के यहाँ से सुर्वणराशि लेकर लौटना गौतम का समुद्र की ओर प्रस्थान व बकपक्षी के घर पर अतिथि होनाच चारों आश्रमों में उत्तम साधनों के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति का कथन चार्वाक का ब्राह्मणों द्वारा वध चार्वाक को प्राप्त हुए वर आदि का श्रीकृष्ण द्वारा वर्णनज जनक का दृष्टांत सुनाकर अर्जुन द्वारा युधिष्ठिर को संन्यास ग्रहण से रोकना जनक की उक्ति तथा राजा नहुष के प्रश्नों के उत्तर मे बोध्यगीता जनकवंशी वसुमान को मुनि का धर्मविषयक उपदेश जनमेजय का इन्द्रोत मुनि की शरण में जाना जप और ध्यान की महिमा और उसका फल जपयज्ञ के विषय में युधिष्ठिर का प्रश्न जाजलि और तुलाधार का धर्म के विषय में संवाद जाजलि की घोर तपस्या व जटाओं में पक्षियों का घोंसला बनाने से उनका अभिमान जाजलि को तुलाधार का आत्मयज्ञविषयक धर्म का उपदेश जाजलि को पक्षियों का उपदेश जापक के लिए देवलोक भी नरक तुल्य इसके प्रतिपादन का वर्णन जापक को मिलने वाले फल की उत्कृष्टता जापक को सावित्री का वरदान जापक में दोष आने के कारण उसे नरक की प्राप्ति जीव की सत्ता तथा नित्यता को युक्तियों से सिद्ध करना जीव की सत्ता पर अनेक युक्तियों से शंका उपस्थित करना जीवात्मा और परमात्मा का योग द्वारा साक्षात्कार जीवोत्पत्ति के दोष और बंधनों से मुक्त तथा विषय शक्ति के त्याग का उपदेश जैगीषव्य का असित-देवल को समत्वबुद्धि का उपदेश ज्ञान का साधन और उसकी महिमा ज्ञान के साधन व ज्ञानी के लक्षण और महिमा ज्ञान से ब्रह्म की प्राप्ति ज्ञानमय उपदेश के पात्र का निर्णय ज्ञानवान संन्यासी की प्रशंसात तनु मुनि का वीरद्युम्न को आशा के स्वरूप का परिचय देना तप की महिमा तप की श्रेष्ठता तपस्वी ऊँट के आलस्य का कुपरिणाम और राजा का कर्तव्य तपोबल की श्रेष्ठता व दृढ़तापूर्वक स्वधर्मपालन का आदेश तृष्णा के परित्याग के विषय में माण्डव्य मुनि और जनक का संवाद त्याग की महिमा के विषय में शम्पाक का उपदेश त्रिवर्ग के विचार का वर्णनद दण्ड का औचित्य तथा दूत व सेनापति के गुण दण्ड का क्षत्रियों कें हाथ में आने की परम्परा का वर्णन दण्ड की उत्पत्ति का वर्णन दण्ड के स्वरूप, नाम, लक्षण और प्रयोग का वर्णन दण्डनीति द्वारा युगों के निर्माण का वर्णन दम की महिमा का वर्णन दान के अधिकारी एवं अनधिकारी का विवेचन दीर्घकाल तक सोच-विचारकर कार्य करने की प्रशंसा दुष्ट मनुष्य द्वारा की हुई निन्दा को सह लेने से लाभ दुष्टों को पहचानने के विषय में इन्द्र और बृहस्पति का संवाद देवस्थान मुनि द्वारा युधिष्ठिर के प्रति उत्तम धर्म-यज्ञादि का उपदेश द्युमत्सेन और सत्यवान का संवाद द्रौपदी का युधिष्ठिर को राजदण्डधारणपूर्वक शासन के लिए प्रेरित करनाध धन की तृष्णा से दु:ख का वर्णन धन के त्याग से परम सुख की प्राप्ति धर्म की गति को सूक्ष्म बताना धर्म के लक्षण व व्यावहारिक नीति का वर्णन ध आगे. धर्म व कर्तव्यों का उपदेश धर्म, अधर्म, वैराग्य और मोक्ष के विषय में युधिष्ठिर के प्रश्न धर्म, अर्थ और काम के विषय में विदुर व पाण्डवों के पृथक-पृथक विचार धर्म, यम और काल का आगमन धर्मपूर्वक प्रजापालन ही राजा का महान धर्म धर्माधर्म के स्वरूप का निर्णय धर्मोपार्जित धन की श्रेष्ठता, व अतिथि-सत्कार का महत्त्व ध्यान के सहायक योग ध्यानयोग का वर्णनन नकुल का गृहस्थ धर्म की प्रशंसा करते हुए युधिष्ठिर को समझाना नगर प्रवेश के समय पुरवासियों एवं ब्राह्मणों द्वारा राजा युधिष्ठिर का सत्कार नाना प्रकार के पापों और प्रायश्रितों का वर्णन नाना प्रकार के भूतों की समीक्षापूर्वक कर्मतत्त्व का विवेचन नारद और असितदेवल का संवाद नारद का कर्ण को शाप प्राप्त होने का प्रसंग सुनाना नारद को अनुस्मृतिस्तोत्र का उपदेश नारद जी का सेमल को उसका अहंकार देखकर फटकारना नारद जी का सेमल वृक्ष से प्रश्न नारद जी द्वारा गालव मुनि को श्रेय का उपदेश नारद द्वारा भगवान की स्तुति नास्तिक मतों के निराकरणपूर्वक शरीर से भिन्न आत्मा की नित्य सत्ता का प्रतिपादन निषिद्ध आचरण के त्याग आदि के परिणाम तथा सत्त्वगुण के सेवन का उपदेश नृशंस अर्थात अत्यन्त नीच पुरुष के लक्षणप पंचमहाभूतों के गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन पञ्चशिख और जनक का संवाद पञ्चशिख के द्वारा मोक्षतत्त्व के विवेचन का वर्णन पति-पत्नी का अध्यात्मविषयक संवाद परब्रह्म की प्राप्ति का उपाय परमात्मतत्त्व का निरूपण परमात्मा की प्राप्ति का साधन परमात्मा की श्रेष्ठता व दर्शन का उपाय परमात्मा प्राप्ति के अन्य साधनों का वर्णन परशुराम के उपाख्यान क्षत्रियों का विनाश तथा पुन: उत्पन्न होने की कथा परशुराम द्वारा होने वाले क्षत्रिय संहार के विषय में युधिष्ठिर का प्रश्न पराशर मुनि का राजा जनक को कल्याण की प्राप्ति के साधन का उपदेश पाण्डवों व ऋषियों का भीष्म से विदा लेना पाप के कारण राजा के पुनरुत्थान के विषय में आंगरिष्ठ और कामन्दक का संवाद पाप को छिपाने से हानि और धर्म की प्रशंसा पाप से शुद्धि के लिए प्रायश्चित पापकर्म के प्रायश्चितों का वर्णन पार्वती के रोष के निवारण के लिए शिव द्वारा दक्ष-यज्ञ का विध्वंस पिता और पुत्र का संवाद पिता के प्रति पुत्रद्वारा ज्ञान का उपदेश प्रकृति के संसर्ग दोष से जीव का पतन प्रकृति पुरुष का विवेक और उसका फल प्रकृति-संसर्ग के कारण जीव का बारंबार जन्म ग्रहण करना प्रजा से कर लेने तथा कोश संग्रह करने का प्रकार प्रजापालन व्यवहार तथा तपस्वीजनों के समादर का निर्देश प्रत्येक दिशा में निवास करने वाले महर्षियों का वर्णन प्रवृत्ति एवं निवृत्तिमार्ग के विषय में स्यूमरश्मि व कपिल संवाद प्रह्लाद और अवधूत का संवाद प्राणियों की श्रेष्ठता के तारतम्य का वर्णनफ फल और सात प्रकार की धारणाओं का वर्णनब बल की महत्ता और पाप से छूटने का प्रायश्रित्त बलि और इन्द्र का संवाद बलि को त्यागकर आयी हुई लक्ष्मी की इन्द्र के द्वारा प्रतिष्ठा बलि द्वारा इन्द्र को फटकारना बहेलिये और कपोत-कपोती का प्रसंग बहेलिये का वैराग्य बहेलिये को स्वर्गलोक की प्राप्ति बुद्धि की श्रेष्ठता और प्रकृति-पुरुष-विवेक ब्रह्म की प्राप्ति का उपाय ब्रह्म की प्राप्ति के विषय में वृत्र और शुक्र का संवाद ब्रह्मचर्य और गार्हस्थ्य आश्रमों के धर्म का वर्णन ब्रह्मचर्य तथा वैराग्य से मुक्ति ब्रह्मचर्य-आश्रम का वर्णन (पिछले 200) (अगले 200)