महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 43 श्लोक 20-38

त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 20-38 का हिन्दी अनुवाद

संजय कहते है- राजन्! भाईयों के इस प्रकार कहने पर भी कुरुकुल को आनन्दित करने वाले राजा युधिष्ठिर उनसे कुछ नहीं बोले। चुपचाप चलते ही गये। तब परम बुद्धिमान महामना भगवान् वासुदेव ने उन चारों भाईयों से हंसते हुए से कहा- ‘इनका अभिप्राय मुझे ज्ञात हो गया है। ये राजा युधिष्ठिर भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और शल्य- इन समस्त गुरुजनों से आज्ञा लेकर शत्रुओं के साथ युद्ध करेंगे। सुना जाता है कि प्राचीन काल में जो गुरुजनों की अनुमति लिये बिना ही युद्ध करता था, वह निश्चय ही उन माननीय पुरुषों की दृष्टि में गिर जाता था। जो शास्त्र की आज्ञा के अनुसार माननीय पुरुषों से आज्ञा लेकर युद्ध करता है, उसकी उस युद्ध में अवश्य विजय होती है ऐसा मेरा विश्वास है’।

जब भगवान् श्रीकृष्ण ये बातें कह रहे थे, उस समय दुर्योधन की सेना की ओर आते हुए युधिष्ठिर को सब लोग अपलक नेत्रों से देख रहे थे। कहीं महान् हाहाकार हो रहा था और कहीं दूसरे लोग मुंह से एक शब्द भी नहीं बोलकर चुप हो गये थे। युधिष्ठिर को दूर से ही देखकर दुर्योधन के सैनिक आपस में इस प्रकार बातचीत करने लगे- ‘यह युधिष्ठिर तो अपने कुल का जीता-जागता कलंक ही है। देखो, स्पष्ट ही दिखायी दे रहा है कि वह राजा युधिष्ठिर भयभीत की भाँति भाईयों सहित भीष्म जी के निकट शरण मांगने के लिये आ रहा है।

पाण्डुनन्दन धनंजय, वृकोदर भीम तथा नकुल-सहदेव जैसे सहायकों के रहते हुए युधिष्ठिर के मन में भय कैसे हो गया। निश्चय ही यह भूमण्डल में विख्यात क्षत्रियों के कुल में उत्पन्न नहीं हुआ है। इसका मानसिक बल अत्यन्त अल्प है; इसीलिये युद्ध के अवसर पर इसका हृदय इतना भयभीत है’। तदनन्तर वे सब सैनिक कौरवों की प्रशंसा करने लगे और प्रसन्नचित्त हो हर्ष में भरकर अपने कपड़े हिलाने लगे। प्रजानाथ! आपके वे सब योद्धा भाईयों तथा श्रीकृष्ण सहित युधिष्ठिर की विशेष रूप से निंदा करते थे। सब लोग मन-ही-मन सोचने लगे कि वह राजा क्या कहेगा और भीष्म जी क्या उत्तर देंगे? युद्ध की श्लाघा रखने वाले भीमसेन तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन भी क्या कहेंगे?

राजन्! दोनों ही सेनाओं में युधिष्ठिर के विषय में महान् संशय उत्पन्न हो गया था। सब सोचते थे कि राजा युधिष्ठिर क्या कहना चाहते हैं। बाण और शक्तियों से भरी हुई शत्रु की सेना में घुसकर भाईयों से घिरे हुए युधिष्ठिर तुरंत ही भीष्मजी के पास जा पहुँचे। वहाँ जाकर उन पाण्डुनन्दन राजा युधिष्ठिर ने अपने दोनों हाथों से पितामह के चरणों को दबाया और युद्ध के लिये उपस्थित हुए उन शांतनुनन्दन भीष्म से इस प्रकार कहा। युधिष्ठिर बोले- दुर्धर्ष वीर पितामह! मैं आपसे आज्ञा चाहता हूं, मुझे आपके साथ युद्ध करना है। तात! इसके लिये आप आज्ञा और आर्शीवाद प्रदान करें। भीष्म जी बोले- पृथ्वीपते! भरतकुलनन्दन! महाराज! यदि उस युद्ध के समय तुम इस प्रकार मेरे पास नहीं आते तो मैं तुम्हें पराजित होने के लिये शाप दे देता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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