महाभारत वन पर्व अध्याय 245 श्लोक 26-30

पच्‍चचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम (245) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पच्‍चचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 26-30 का हिन्दी अनुवाद


(रणभूमि में सब ओर विचरने के कारण) उस समय अर्जुन अनेक रूप धारण किये हुए जान पड़ते थे। उन्‍होंने कुपित होकर शब्‍दभेद का सहारा ले चित्रसेन की अन्‍तर्धान माया को भी नष्‍ट कर दिया।

चित्रसेन अर्जुन के प्‍यारे सखा थे। उन्‍होंने महात्‍मा अर्जुन के बाणों से अत्‍यन्‍त घायल होने पर अपने आपको उनके सामने प्रकट कर दिया।

चित्रसेन ने उनसे कहा- ‘कुन्‍तीनन्‍दन! इस युद्ध में मुझे तुम अपन सखा चित्रसेन समझो।' यह सुनकर अर्जुन ने चित्रसेन की ओर दृष्टिपात किया। अपने सखा को युद्ध में अत्‍यन्‍त दुर्बल हुआ देख पाण्‍डवप्रवर अर्जुन ने अपने धनुष पर प्रकट किये हुए उस दिव्‍यास्‍त्र का उपसंहार कर दिया।

अर्जुन को अपना अस्‍त्र समेटते हुए देख सब पाण्‍डवों ने भी दौड़ते हुए घोड़ों को रोक लिया तथा वेगपूर्वक छूटने वाले और धनुषों का संचालन भी बन्‍द कर दिया।

तत्‍पश्‍चात गन्‍धर्वराज चित्रसेन, भीमसेन, अर्जुन और नकुल-सहदेव सब लोग परस्‍पर कुशल समाचार पूछकर अपने रथों में ही बैठे रहे।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत घोषयात्रापर्व में गन्‍धर्व पराजय विषयक दो सौ पैंतालीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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