द्वयधिकशततम (102) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्वयधिकशततम अध्याय: श्लोक 15-29 का हिन्दी अनुवाद
फिर तो समस्त राजा इस अपमान को न सह सके; वे अपनी भुजाओं का स्पर्श करते (ताल ठोकते) और दांतों से ओठ चबाते हुए अपनी जगह से उछल पड़े। सब लोग जल्दी-जल्दी अपने आभूषण उतारकर कवच पहनने लगे। उस समय बड़ा भारी कोलाहल मच गया। जनमेजय! जल्दबाजी के कारण उन सबके आभूषण और कवच इधर-उधर गिर पड़े थे। उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो आकाश मण्डल से तारे टूट-टूट कर गिर रहे हों। कितने ही योद्धओं के कवच और गहने इधर-उधर बिखर गये। क्रोध और अमर्ष के कारण उनकी भौहें टेढ़ी और आंखें लाल हो गयी थीं। सारथियों ने सुन्दर रथ सजाकर उनमें सुन्दर अश्व जोत दिये थे। उन रथों पर बैठकर सब प्रकार के अस्त्र-शास्त्रों से सम्पन्न हो हथियार उठाये हुए उन वीरों ने जाते हुए कुरुनन्दन भीष्म जी का पीछा किया। जनमेजय! तदनन्तर उन राजाओं और भीष्म जी का घोर संग्राम हुआ। भीष्म जी अकेले थे और राजा लोग बहुत। उनमें रोंगट खड़े कर देने वाला भयंकर संग्राम छिड़ गया। राजन्! उन नरेशों ने भीष्म जी पर एक ही साथ दस हजार बाण चलाये; परंतु भीष्म जी ने उन सबको अपने ऊपर आने से पहले बीच में ही विशाल पंख युक्त बाणों की बौछार करके शीघ्रतापूर्वक काट गिराया। तब वे सब राजा उन्हें चारों ओर से घेरकर उनके ऊपर उसी प्रकार बाणों की झड़ी लगाने लगे, जैसे बादल पर्वत पर पानी की धारा बरसाते हैं। भीष्म जी ने सब ओर से उस बाण-वर्षा को रोक कर उन सभी राजाओं को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। तब उनमें से प्रत्येक ने भीष्म जी को पाँच-पाँच बाण मारे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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