महाभारत आदि पर्व अध्याय 102 श्लोक 15-29

द्वयधिकशततम (102) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्वयधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 15-29 का हिन्दी अनुवाद


कुछ लोक आर्ष विधि (यज्ञ) करके ॠत्विजों को कन्‍या देते हैं। इस प्रकार विवाहित होने वाले (दैव विवाह की रीति से) पत्नी प्राप्‍त करते हैं। इस तरह विद्वानों ने यह विवाह का आठवाँ प्रकार माना है। इन सबको तुम लोग समझो। क्षत्रिय स्‍वयंवर की प्रशंसा करते और उसमें जाते हैं; परंतु उसमें भी समस्‍त राजाओं को परास्‍त करके जिस कन्‍या का अपहरण किया जाता है, धर्मवादी विद्वान् क्षत्रिय के लिये उसे सबसे श्रेष्ठ मानते हैं। अत: भूमिपालों! मैं इन कन्‍याओं को यहाँ से बलपूर्वक हर ले जाना चाहता हूँ। तुम लोग अपनी सारी शक्ति लगाकर विजय अथवा पराजय के लिये मुझे रोकने का प्रयत्‍न करो। राजाओं! मैं युद्ध के लिये दृढ़ निश्चय करके यहाँ डटा हुआ हूँ।’ परमपराक्रमी कुरुकुल श्रेष्ठ भीष्‍म जी उन महीपालों तथा काशिराज से उपर्युक्त बातें कहकर उन समस्‍त कन्‍याओं को, जिन्‍हें वे उठाकर अपने रथ पर बिठा चुके थे, साथ लेकर सबको ललकारते हुए वहाँ से शीघ्रतापूर्वक चल दिये।

फि‍र तो समस्‍त राजा इस अपमान को न सह सके; वे अपनी भुजाओं का स्‍पर्श करते (ताल ठोकते) और दांतों से ओठ चबाते हुए अपनी जगह से उछल पड़े। सब लोग जल्‍दी-जल्‍दी अपने आभूषण उतारकर कवच पहनने लगे। उस समय बड़ा भारी कोलाहल मच गया। जनमेजय! जल्‍दबाजी के कारण उन सबके आभूषण और कवच इधर-उधर गिर पड़े थे। उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो आकाश मण्‍डल से तारे टूट-टूट कर गिर रहे हों। कितने ही योद्धओं के कवच और गहने इधर-उधर बिखर गये। क्रोध और अमर्ष के कारण उनकी भौहें टेढ़ी और आंखें लाल हो गयी थीं। सारथियों ने सुन्‍दर रथ सजाकर उनमें सुन्‍दर अश्व जोत दिये थे। उन रथों पर बैठकर सब प्रकार के अस्त्र-शास्त्रों से सम्‍पन्न हो हथियार उठाये हुए उन वीरों ने जाते हुए कुरुनन्‍दन भीष्‍म जी का पीछा किया।

जनमेजय! तदनन्‍तर उन राजाओं और भीष्‍म जी का घोर संग्राम हुआ। भीष्‍म जी अकेले थे और राजा लोग बहुत। उनमें रोंगट खड़े कर देने वाला भयंकर संग्राम छिड़ गया। राजन्! उन नरेशों ने भीष्‍म जी पर एक ही साथ दस हजार बाण चलाये; परंतु भीष्‍म जी ने उन सबको अपने ऊपर आने से पहले बीच में ही विशाल पंख युक्त बाणों की बौछार करके शीघ्रतापूर्वक काट गिराया। तब वे सब राजा उन्‍हें चारों ओर से घेरकर उनके ऊपर उसी प्रकार बाणों की झड़ी लगाने लगे, जैसे बादल पर्वत पर पानी की धारा बरसाते हैं। भीष्‍म जी ने सब ओर से उस बाण-वर्षा को रोक कर उन सभी राजाओं को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। तब उनमें से प्रत्‍येक ने भीष्‍म जी को पाँच-पाँच बाण मारे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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