त्रयोविंश (23) अध्याशय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्रयोविंश अध्यााय: श्लोक 19-27 का हिन्दी अनुवाद
हम यहाँ आकर आपके शरणागत हो रहे हैं। आप ही कार्य और कारण रूप हैं। आपसे ही सबको वर मिलता है। आपका पराक्रम अजेय है। आपके तेज से यह सम्पूर्ण जगत संतप्त हो उठा है। जगदीश्वर! आप तपाये हुए सुवर्ण के समान अपने दिव्य तेज से सम्पूर्ण देवताओं और महात्मा पुरुषों की रक्षा करें। पक्षिराज! प्रभो! विमान पर चलने वाले देवता आपके तेज से तिरस्कृत एवं भयभीत हो आकाश में पथ भ्रष्ट हो जाते हैं। आप दयालु महात्मा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। प्रभो! आप कुपित न हों। सम्पूर्ण जगत पर उत्तम दया का विस्तार करें। आप ईश्वर हैं, अतः शान्ति धारण करें और हम सबकी रक्षा करें। महान वज्र की गड़गड़ाहट के समान आपकी गर्जना से दिशाएँ, आकाश, स्वर्ग तथा यह पृथ्वी सब के सब विचलित हो उठे हैं और हमारा हृदय भी निरन्तर काँपता रहता है। अतः खगश्रेष्ठ! आप अग्नि के समान तेजस्वी अपने इस भयंकर रूप को शान्त कीजिये। क्रोध में भरे हुए यमराज के समान आपकी उग्र कान्ति देखकर हमारा मन अस्थिर एवं चंचल है। आप हम याचकों पर प्रसन्न होइये। भगवन! आप हमारे लिये कल्याण स्वरूप और सुखदायक हो जाइये। ऋषियों सहित देवताओं के इस प्रकार स्तुति करने पर उत्तम पंखों वाले गरुड़ ने उस समय अपने तेज को समेट लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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