त्रयोदश (13) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: त्रयोदश अध्याय: श्लोक 24-48 का हिन्दी अनुवाद
राजन! तदनन्तर प्रतापी महाबाहु भीमसेन मन से प्राणों का मोह छोड़कर मद्रराज शल्य के साथ युद्ध करने लगे। नकुल, सहदेव और महारथी सात्यकि ने भी उस समय शल्य को घेरकर उनके ऊपर चारों ओर से बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। इन चार महाधनुर्धर पाण्डव पक्ष के महारथियों से घिरे हुए प्रतापी मद्रराज शल्य उन सबके साथ युद्ध कर रहे थे। राजन! उस महासमर में धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर ने एक क्षुरप्र द्वारा मद्रराज शल्य के चक्ररक्षक को शीघ्र ही मार डाला। अपने महारथी शूरवीर चक्ररक्षक के मारे जाने पर बलवान मद्रराज भी बाणों द्वारा शत्रुपक्ष के समस्त योद्धाओं को आच्छादित कर दिया। राजन! समरांगण में अपने समस्त सैनिकों को बाणों से ढका हुआ देख धर्मपुत्र युधिष्ठिर मन-ही-मन इस प्रकार चिन्ता करने लगे। इस युद्धस्थल में भगवान श्रीकृष्ण की कही हुई वह महत्त्वपूर्ण बात कैसे सिद्ध हो सकेगी? कहीं ऐसा न हो कि रणभूमि में कुपित हुए महाराज शल्य मेरी सारी सेना का संहार कर डालें। मैं, मेरे भाई, महारथी सात्यकि तथा पांचाल और सृंजय योद्धा सब मिलकर भी मद्रराज शल्य को पराजित करने में समर्थ नहीं हो रहे हैं। जान पड़ता है ये महाबली मामा आज हम लोगों का वध कर डालेंगे। फिर भगवान श्रीकृष्ण की यह बात (कि शल्य मेरे हाथ से मारे जायँगे) कैसे सिद्ध होगी? पाण्डु के बड़े भाई महाराज धृतराष्ट्र! तदनन्तर रथ, हाथी और घोड़ों सहित समस्त पाण्डवयोद्धा मद्रराज शल्य को सब ओर से पीड़ा देते हुए उन पर चढ़ आये। जैसे वायु बड़े-बड़े़ बादलों को उड़ा देती है, उसी प्रकार समरांगण में राजा शल्य ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से परिपूर्ण उस उमड़ी हुई शस्त्रवर्षा को छिन्न-भिन्न कर डाला। तत्पश्चात शल्य के चलाये हुए सुनहरे पंख वाले बाणों की वर्षा आकाश में टिड्डीदलों के समान छा गयी, जिसे हमने अपनी आँखों देखा था। युद्ध के मुहाने पर मद्रराज के चलाये हुए वे बाण शलभ-समूहों के समान गिरते दिखायी देते थे। नरेश्वर! मद्रराज शल्य के धनुष से छुटे उन सुवर्णभूषित बाणों से आकाश ठसाठस भर गया था। उस महायुद्ध में बाणों द्वारा महान अन्धकार छा गया, जिससे वहाँ हमारी और पाण्डवों की कोई भी वस्तु दिखायी नहीं देती थी। बलवान मद्रराज के द्वारा शीघ्रतापूर्वक की जाने वाले उस बाण वर्षा से पाण्डवों के उस सैन्यसमुद्र को विचलित होते देख देवता, गन्धर्व और दानव अत्यन्त आश्चर्य में पड़ गये। मान्यवर! विजय के लिये प्रयत्न करने वाले उन समस्त योद्धाओं को सब ओर से बाणों द्वारा आच्छादित करके शल्य धर्मराज युधिष्ठिर को भी ढक्कर बारंबार सिंह के समान गर्जना करने लगे। समरांगण में उनके बाणों से आच्छादित हुए पाण्डवों के महारथी उस युद्ध में महारथी शल्य की ओर आगे बढ़ने में समर्थ न हो सके। तो भी धर्मराज को आगे रखकर भीमसेन आदि रथी संग्राम में शोभा पाने वाले शूरवीर शल्य को वहाँ छोडकर पीछे न हटे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में शल्य का युद्धविषयक तेरहवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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