महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 136 श्लोक 17-25

षट्-त्रिंशदधिकशततम (136) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: षट्-त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-25 का हिन्दी अनुवाद


जो मनुष्य किसी के यहाँ मरणाशौच में दस दिन तक अन्न खाता है, उसे गायत्री मन्त्र, रैवत शाम, पवित्रेष्टि कूष्माण्ड अनुवाक् और अघमर्षण का जप करके उस दोष का प्रायश्चित्त करना चाहिये।

इसी प्रकार जो मरणाशौच वाले घर में लगातार तीन रात भोजन करता है, वह ब्राह्मण सात दिनों तक त्रिकाल स्नान करने से शुद्ध होता है। यह प्रायश्चित्त करने के बाद उसे सिद्धि प्राप्त होती है और वह भारी आपत्ति में कभी नहीं पड़ता है।

जो ब्राह्मण शूद्रों के साथ एक पंक्ति में भोजन कर लेता है, वह अशुद्ध हो जाता है। अतः उनकी शुद्धि के लिये शास्त्रीय विधि के अनुसार यहाँ शौच का विधान है।

जो ब्राह्मण वैश्यों के साथ एक पंक्ति में भोजन करता है, वह तीन रात तक व्रत करने पर उस कर्मदोष से मुक्त होता है।

जो ब्राह्मण क्षत्रियों के साथ एक पंक्ति में भोजन करता है, वह वस्त्रों सहित स्नान करने से पापमुक्त होता है।

ब्राह्मण का तेज उसके साथ भोजन करने वाले शूद्र के कुल का, वैश्य के पशु और बान्धवों का तथा क्षत्रिय की सम्पत्ति का नाश कर डालता है। इसके लिये प्रायश्चित्त और शान्ति होम करना चाहिये। गायत्री मन्त्र, रैवत साम, पवित्रेष्टि, कूष्माण्ड अनुवाक् और अघमर्षण मन्त्र का जप भी आवश्यक है। किसी का जूठा अथवा उसके साथ एक पंक्ति में भोजन नहीं करना चाहिये।

उपर्युक्त प्रायश्चित्त के विषय में संशय नहीं करना चाहिये। प्रायश्चित्त करने के अनन्तर गोरोचन, दूर्वा और हल्दी आदि मांगलिक वस्तुओं का स्पर्श करना चाहिये।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में प्रायश्चित्तविधि नामक एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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