महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 11 श्लोक 21-40

एकादश (11) अध्याय: भीष्म पर्व (भूमि पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद

संजय ने कहा- महाराज कुरुनन्दन! सम्पूर्ण द्वीपों में गौर, कृष्‍ण तथा इन दोनों वर्णों का सम्मिश्रण देखा जाता है। भारत! यह पर्वत जिस कारण से श्‍याम होकर दूसरों में भी श्‍यामता उत्पन्न करने वाला हुआ, वह आपको बताता हूँ। यहाँ भगवान श्रीकृष्‍ण निवास करते हैं, अत: उन्हीं की कान्ति से यह (स्वयं भी) श्‍यामता को प्राप्त हुआ है (और अपने समीप रहने वाली प्रजा में भी श्‍यामता उत्पन्न कर देता है)। कौरवराज! श्‍यामगिरि के बाद बहुत ऊंचा दुर्ग शैल है। उसके बाद केसर पर्वत है, जहाँ से चली हुई वायु केसर की सुगन्ध लिये बहती है। इन सब पर्वतों का विस्तार दूना होता गया है।

कुरुनन्दन! मनीषी पुरुषों ने उन पर्वतों के समीप सात वर्ष बताये हैं। महामेरू पर्वत के समीप महाकाश वर्ष है, जलद या मलय के निकट कुमुदोत्तर है। महाराज! जलधार गिरि का पार्श्‍ववर्ती वर्ष सुकुमार बताया गया है। रैवतक पर्वत का कुमारवर्ष तथा श्‍यामगिरि का मणिकाञ्चन वर्ष है। इसी प्रकार केसर के समीपवर्ती वर्ष को मोदा की कहते हैं। उसके आगे महापुमान नामक एक पर्वत है। वह उस द्वीप की लंबाई और चौड़ाई सबको घेरकर खड़ा है। महाराज! उसके बीच में शाक नामक एक बड़ा भारी वृक्ष है, जो जम्बूद्वीप के समान ही विशाल है। महाराज! वहाँ की प्रजा सदा उस शाक वृक्ष के ही आश्रित रहती है। वहाँ बड़े पवित्र जनपद है। उस द्वीप में भगवान् शंकर की आराधना की जाती है।

राजन्! भरतनन्दन! वहाँ सिद्ध, चारण और देवता जाते है। वहाँ के चारों वर्णों की प्रजा अत्यन्त धार्मिक होती है। सभी वर्ण के लोग वहाँ अपने-अपने वर्णाश्रमोचित कर्म का पालन करते हैं। वहाँ कोई चोर नहीं दिखायी देता। महाराज! उस द्वीप के निवासी दीर्घायु तथा जरा और मृत्यु से रहित होते हैं। जैसे वर्षाॠतु में समुद्रगामिनी नदियां बढ़ जाती हैं, उसी प्रकार वहाँ की समस्त प्रजा सदा वृद्धि को प्राप्त होती रहती है। उस द्वीप में अनेक पवित्र जल वाली नदियां बहती हैं। वहाँ गंगा भी अनेक धाराओं में विभक्त देखी जाती है। कुरुनन्दन! भरतश्रेष्‍ठ! उस द्वीप में सुकुमारी, कुमारी, शीताशी, बेणिका, महानदी, मणिजला तथा चक्षुर्वर्धनिका आदि पवित्र जल वाली नदियां बहती हैं। वहाँ लाखों ऐसी नदियां हैं, जिनसे जल लेकर इन्द्र वर्षा करते हैं। उनके नाम और परिमाण की संख्‍या बताना कठिन ही नहीं, असम्भव हैं। वे सभी श्रेष्‍ठ नदियां परम पुण्‍यमयी हैं। उस द्वीप में लोकसम्मानित चार पवित्र जनपद हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- मंग, मशक, मानस तथा मन्दग

नरेश्‍वर! उनमें से मंग जनपद में अधिकतर ब्राह्मण निवास करते हैं। वे सबके सब अपने कर्तव्य के पालन में तत्पर रहते हैं। महाराज! मशक जनपद में सम्पूर्ण कामनाओं के देने वाले धर्मात्मा क्षत्रिय निवास करते हैं। मानस जनपद के निवासी वैश्‍यवृत्ति से जीवन-निर्वाह करते हैं। वे सर्वभोगसम्पन्न, शूरवीर, धर्म और अर्थ को समझने वाले एवं दृढ़निश्रयी होते हैं। मन्दग जनपद में शूद्र रहते हैं। वे भी धर्मात्मा होते हैं। राजेन्द्र! वहाँ न कोई राजा है, न दण्‍ड है और न दण्‍ड देने वाला है। वहाँ के लोग धर्म के ज्ञाता हैं और स्वधर्मपालन के ही प्रभाव से एक-दूसरे की रक्षा करते हैं। महाराज! उस महान् तेजोमय शाकद्वीप के सम्बन्ध में इतना ही कहा जा सकता है और इतना ही सुनना चाहिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍मपर्व के अन्तर्गत भूमिपर्व में शाकद्वीपवर्णन-विषयक ग्यारहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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