महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 155 श्लोक 25-35

पंचपंचाशदधिकशततम (155) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सैन्यनिर्याण पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 25-35 का हिन्दी अनुवाद
  • इसके सिवा सेना, वाहिनी, पृतना, ध्‍वजिनी, चमू, वरूथिनी और अक्षौहिणी- इन पर्यायवाची[1] नामों द्वारा भी सेना का वर्णन किया गया है। (25)
  • इस प्रकार बुद्धिमान दुर्योधन ने अपनी सेनाओं को व्‍यूहरचनापूर्वक संगठित किया था। कुरुक्षेत्र में ग्‍यारह और सात मिलकर अठारह अक्षौहिणी सेनाएं एकत्र हुई थी। (26)
  • पाण्‍डवों की सेना केवल सात अक्षौहिणी थी और कौरवों के पक्ष में ग्‍यारह अक्षौहिणी सेनाएं एकत्र हो गयी थीं। (27)
  • पचपन पैदलों की एक टुकडी को पत्ति कहते हैं। तीन पत्तियाँ मिलकर एक सेनामुख कहलाती है। सेनामुख का ही दूसरा नाम गुल्म है। (28)
  • तीन गुल्‍मों का एक गण होता है। दुर्योधन की सेनाओं में युद्ध करने वाले पैदल योद्धाओं के ऐसे-ऐसे गण दस हजार से भी अधिक थे। (29)
  • उस समय वहाँ महाबाहु राजा दुर्योधन ने अच्‍छी तरह सोच-विचार कर बुद्धिमान एवं शूरवीर पुरुषों को सेनापति बनाया। (30)
  • कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और अश्वत्‍थामा इन श्रेष्‍ठ पुरुषों को एवं मद्रराज शल्‍य, सिंधुराज जयद्रथ, कम्बोजराज सुदक्षिण, कृतवर्मा, कर्ण, भूरिश्रवा, सुबलपुत्र शकुनि तथा उन सबको पृथक-पृथक ए‍क-एक अक्षौहिणी सेना का नायक निश्चित करके विधिपूर्वक उनका अभिषेक किया। (31-33)
  • भारत! दुर्योधन प्रतिदिन और प्रत्‍येक वेला में उन सेनापतियों का बारंबार विविध प्रकार से प्रत्‍यक्ष पूजन करता था। (34)
  • उनके जो अनुयायी थे, उनको भी उसी प्रकार यथायोग्‍य स्‍थानों पर नियुक्‍त कर दिया गया। वे राजाओं के सैनिक राजा दुर्योधन का प्रिय करने की इच्‍छा रखकर अपने-अपने कार्य में तत्‍पर हो गये। (35)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत सैन्‍यनिर्वाणपर्वमें दुर्योधन की सेनाका विभागविषयक एक सौ पचपनवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. समानार्थक

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