नवाधिकशततम (109) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 26-30 का हिन्दी अनुवाद
उसके मारने का पाप नहीं लगता; अतः जो कोई भी मनुष्य इन हतबुद्धि पापियों के वध का नियम ले सकता है। जैसे कौए और गीध होते हैं, वैसे ही कपट से जीविका चलाने वाले लोग भी होते हैं। वे मरने के बाद इन्हीं योनियों में जन्म लेते हैं। जो मनुष्य जिसके साथ जैसा बर्ताव करे, उसके साथ भी उसे वैसा ही बर्ताव करना चाहिये; यह धर्म (न्याय) है। कपटपूर्ण आचरण करने वाले को वैसे ही आचरण के द्वारा दबाना उचित है और सदाचारी को सद्व्यवहार के द्वारा ही अपनाना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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