महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व अध्याय 5 श्लोक 45-60

पंचम (5) अध्‍याय: स्‍वर्गारोहण पर्व

Prev.png

महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व पंचम अध्याय: श्लोक 45-60 का हिन्दी अनुवाद


इस ग्रन्थ में भरतवंशियों के महान जन्मकर्म का वर्णन है, इसलिये इसे 'महाभारत' कहते हैं। महान और भारी होने के कारण भी इसका नाम 'महाभारत' हुआ है। जो महाभारत की इस व्युत्पत्ति को जानता और समझता है, वह समस्त पापों से मुक्‍त हो जाता है। अठारह पुराणों के निर्माता और वेदविद्या के महासागर महात्मा व्यास मुनि का यह सिहंनाद सुनो। वे कहते हैं- "अठारह पुराण, सम्पूर्ण धर्मशास्त्र और छहों अंगों सहित चारों वेद एक ओर तथा केवल महाभारत दूसरी ओर, यह अकेला ही उन सब के बराबर है।"

मुनिवर भगवान श्रीकृष्ण द्वैपायन ने तीन वर्षों में इस सम्पूर्ण महाभारत को पूर्ण किया था। जो 'जय' नामक इस महाभारत इतिहास को सदा भक्तिपूर्वक सुनता रहता है, उसके यहाँ श्री, कीर्ति और विद्या तीनों साथ-साथ रहती हैं। भरतश्रेष्ठ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो कुछ महाभारत में कहा गया है, वही अन्यत्र है। जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है। श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास के द्वारा प्रकट होने के कारण ‘कृष्णादागत: कार्ष्ण:' इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह उपाख्‍यान ‘कार्ष्ण वेद’ के नाम से प्रसिद्ध है। मोक्ष की इच्‍छा रखने वाले ब्राह्मण को, राज्‍य चाहने वाले क्षत्रिय को तथा उत्तम पुत्र की इच्‍छा रखने वाली गर्भिणी स्त्री को भी इस 'जय' नामक इतिहास का श्रवण करना चाहिये। महाभारत का श्रवण या पाठ करने वाला मनुष्य यदि स्वर्ग की इच्‍छा करे तो उसे स्वर्ग मिलता है और युद्ध में विजय पाना चाहे तो विजय मिलती है।

इसी प्रकार गर्भिणी स्त्री को महाभारत के श्रवण से सुयोग्‍य पुत्र या परम सौभाग्‍यशालिनी कन्या की प्राप्ति होती है। नित्यसिद्ध मोक्षस्वरूप भगवान कृष्ण द्वैपायन ने धर्म की कामना से इस महाभारत संदर्भ की रचना की है। उन्होंने पहले साठ लाख श्लोकों की 'महाभारतसंहिता' बनायी थी। उसमें तीस लाख श्लोकों की संहिता का देवलोक में प्रचार हुआ। पंद्रह लाख की दूसरी संहिता पितृलोक में प्रचलित हुई। चौदह लाख श्लोकों की तीसरी संहिता का यक्षलोक में आदर हुआ तथा एक लाख श्लोकों की चौथी संहिता मनुष्यों में प्रचारित हुई। देवताओं को देवर्षि नारद ने, पितरों को असित देवल ने, यक्ष और राक्षसों को शुकदेव जी ने और मनुष्यों को वैशम्पायन जी ने ही पहले-पहल 'महाभारतसंहिता' सुनायी है।

शौनक जी! जो मनुष्य ब्राह्मणों को आगे करके गम्भीर अर्थ से परिपूर्ण इतिहास का श्रवण करता है, वह इस जगत में सारे मनोवांछित भोगों और उत्तम कीर्ति को पाकर सिद्धि प्राप्त कर लेता है। इस विषय में मु्झे तनिक भी संशय नहीं है। जो अत्यन्त श्रद्धा और भक्ति के साथ महाभारत के एक अंश को भी सुनता या दूसरों को सुनाता है, उसे सम्पूर्ण महाभारत के अध्‍ययन का पुण्य प्राप्त होता है और उसी के प्रभाव से उसे उत्तम सिद्धि मिल जाती है। जिन भगवान वेदव्यास ने इस पवित्र संहिता को प्रकट करके अपने पुत्र शुकदेव जी को पढ़ाया था (वे महाभारत के सारभूत उपदेश का इस प्रकार वर्णन करते हैं-) मनुष्य इस जगत में हज़ारों माता-पिताओं तथा सैकड़ों स्त्री-पुत्रों के संयोग-वियोग का अनुभव कर चुके हैं, करते हैं और करते रहेंगे।


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः