अष्टषष्टितम (68) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 13-26 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! इसी समय उत्तर के भेजे हुए शीघ्रगामी दूतों ने विराट नगर में आकर विजय की सूचना दी। मन्त्री ने वह सब समाचार महाराज से कह सुनाया। अपने पक्ष की उत्तम विजय औश्र कौरवों की करारी हार हुई है। राजकुमार उत्तर नगर में आ रहे हैं। समसत गौएँ जीत ली गयीं तथा कौरव परास्त होकर भाग गये। शत्रुओं को संताप देने वाले कुमार उत्तर सारथि सहित सकुशल हैं। युधिष्ठिर ने कहा- महाराज! सौभाग्य की बात है कि गौएँ जीत ली गयीं और कौरव भाग गये। आपके पुत्र ने कौरवों पर जो विजय पायी है, उसे मैं कोई आश्चर्य के बात नहीं मानता। जिसका सारथि बृहन्नला हो, उसकी विजय तो निश्चित ही है। देवराज इन्द्र का शीघ्रगामी सारथि मातलि तािा श्रीकृष्ण का सारथि दारुक- ये दोनों बृहन्नला की समानता नहीं कर सकते। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अपने अमित पराक्रमी कुमार की विजय का समाचार सुनकर राजा विराट बड़े प्रसन्न हुए। उनके शरीर में रोमांच हो आया। उन्होंने वस्त्र और आभूषणों से उन दूतों का सत्कार किया और मन्त्री को आज्ञा दी- ‘मेरे नगर की सड़कों को पताकाओं से अलुकृत किया जाय। फूलों तािा नाना प्रकार के उपहारों से सब देवताओं की पूजा होनी चाहिये। कुमार, मुख्य मुख्य योद्धा, श्रृंगार से सुशोभित वारांगनाएँ और सब प्रकार के बाजे-गाजे मेरे पुत्र की अगवानी में भेजे जायँ। ‘एक मनुष्य शेघ्र ही हाथ में घण्टा लिये मतवाले गजराज पर बैठ जाय और नगर के समस्त चैराहों पर हमारी विजय का संवाद सुनावे। राजकुमारी उत्तरा भी उत्तम श्रृंगार और सुन्दर वेष-भूषा से सुशोभित हो अन्य राजकुमारियों के साथ मेरे पुत्र की अगवानी में जायँ’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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