अष्टषष्टितम (68) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 27-36 का हिन्दी अनुवाद
विराट ने कहा- स्त्रियाँ, गौएँ, सुवर्ण तथा अन्य जो कोई भी धन सुरक्षित रक्खा जाता है, बिना जूए के वह सब मुझे कुछ नहीं चाहिये। ( मुझे तो जूआ ही सबसे अधिक प्रिय )। कंक बोले- सबको मान देने वाले महाराज! आपको जूए से क्या लेना है? इसमें तो बहुत से दोष हैं। जूआ खेलने में अनेक दोष होते हैं, इसलिये इसे त्याग देना चाहिये। आपने पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को देखा होगा अथवा उनका नाम तो अवश्य सुना होगा। वे अपने अत्यन्त समृद्धिशाली राष्ट्र को, देवताओं के समान तेजस्वी भाइयों कसे तथा समूचे राज्य को भी जूए में हार गये थे। अतः मैं जेए को पसंद नहीं करता। नाना प्रकार के रत्नों और धन को हार जाने के कारण अब वे जुआरी युधिष्ठिर निश्चय ही पश्चाताप करते होंगे। इस जूए में आसक्त होने पर राज्य का नाश होता है, फिर जुआरी एक दूसरे के प्रति कटु वचनों का प्रयोग करते हैं। जूआ एक ही दिन में महान धन राशि का नाश करने वाला है। अतः विद्वान् पुरुषों को इस ( धोखा देने वाले जूए ) पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये। राजन्! तो भी यदि आपकी रुचि और आग्रह हो, तो हम खेलेंगे ही। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! जूए का खेल आरम्भ हो गया। खेलते-खेलते मत्स्यराज ने पाण्डु नन्दन से कहा- ‘देखो, आज मेरे बेटे ने यंद्ध में उन प्रसिद्ध कौरवों पर विजय पायी है’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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