महाभारत विराट पर्व अध्याय 68 श्लोक 27-36

अष्टषष्टितम (68) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 27-36 का हिन्दी अनुवाद


वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन्! राजा की इस आज्ञा को सुनकर बहुमूल्य वेशभूषा से सुशोभित सौभाग्यवती तरुणी स्त्रियों, सूत, मागध और बंदीजनों सहित समस्त पुरवासी, हाथों में मांगलिक वस्तुएँ लेकर भेरी, तूर्य, शंख तथा पणव आदि मांगलिक बाजे साथ लिये महाबली विराट के अनन्त पराक्रमी पुत्र उत्तर की आगवानी करने के लिये नगर से बाहर गये। राजन! तदनन्तर सेना, सुन्दर वस्त्राभूषणों से विभूषित कन्याओं और वारांगनाओं को भेजकर परम बुद्धिमान मत्स्य नरेश हर्षोल्लास में भरकर इस प्रकार बोले। सैरन्ध्री! जा, पासे ले आ। कंक! जूआ प्रारम्भ हो।’ उन्हें ऐसा कहते देख पाण्डु नन्दन युधिष्ठिर बोले। ‘राजन! मैंने सुना है, जब चालाक जुआरी अत्यन्त हर्ष में भरा हो, तो उसके साथ जूआ नहीं खेलना चाहिये। आज आप भी बड़े आनन्द में मग्न हैं; अतः आपके साथ जूआ खेलने का साहस नहीं होता, तथापि आपका प्रिय कार्य तो करना ही चाहता हूँ, अतः यदि आपकी इचछा हो, तो खेल शुरू हो सकता है’।

विराट ने कहा- स्त्रियाँ, गौएँ, सुवर्ण तथा अन्य जो कोई भी धन सुरक्षित रक्खा जाता है, बिना जूए के वह सब मुझे कुछ नहीं चाहिये। ( मुझे तो जूआ ही सबसे अधिक प्रिय )।

कंक बोले- सबको मान देने वाले महाराज! आपको जूए से क्या लेना है? इसमें तो बहुत से दोष हैं। जूआ खेलने में अनेक दोष होते हैं, इसलिये इसे त्याग देना चाहिये। आपने पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को देखा होगा अथवा उनका नाम तो अवश्य सुना होगा। वे अपने अत्यन्त समृद्धिशाली राष्ट्र को, देवताओं के समान तेजस्वी भाइयों कसे तथा समूचे राज्य को भी जूए में हार गये थे। अतः मैं जेए को पसंद नहीं करता। नाना प्रकार के रत्नों और धन को हार जाने के कारण अब वे जुआरी युधिष्ठिर निश्चय ही पश्चाताप करते होंगे। इस जूए में आसक्त होने पर राज्य का नाश होता है, फिर जुआरी एक दूसरे के प्रति कटु वचनों का प्रयोग करते हैं। जूआ एक ही दिन में महान धन राशि का नाश करने वाला है। अतः विद्वान् पुरुषों को इस ( धोखा देने वाले जूए ) पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये। राजन्! तो भी यदि आपकी रुचि और आग्रह हो, तो हम खेलेंगे ही।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! जूए का खेल आरम्भ हो गया। खेलते-खेलते मत्स्यराज ने पाण्डु नन्दन से कहा- ‘देखो, आज मेरे बेटे ने यंद्ध में उन प्रसिद्ध कौरवों पर विजय पायी है’।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः