महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 228 श्लोक 91-96

अष्‍टाविंशत्‍यधिकद्विशततम (228) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: अष्‍टाविंशत्‍यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 91-96 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्‍तर निर्मल एवं प्रकाशपूर्ण आकाशमण्‍डल स्‍वयम्‍भू ब्रह्मा जी के भवन में अमृत की वर्षा करने लगा। देवताओं की दुन्‍दुभियाँ बिना बजाये ही बज उठीं तथा सम्‍पूर्ण दिशाएं स्‍वच्‍छ एवं प्रकाशित दिखायी देने लगीं। लक्ष्‍मी जी के स्‍वर्ग में पधारने पर इन्‍द्रदेव ऋतु के अनुसार संसार में लगी हुई खेती को सींचने के लिये समय पर वर्षा करने लगे। कोई भी धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होता था तथा अनेक समुद्रों से विभूषित हुई पृथ्‍वी उन समुद्रों की गर्जना के रूप में त्रिभुवन वासियों की विजय के लिये मानो सुन्‍दर जयघोष करने लगी। उस समय मनस्‍वी मानव पुण्‍यवानों के मंगलमय पथ पर स्थित हो सत्‍कर्मों से परम सुन्‍दर शोभा पाने लगे तथा देवता, किन्‍नर, यक्ष, राक्षस और मनुष्‍य समृद्धिशाली एवं उदारचेता हो गये। उन दिनों अकाल मृत्‍यु की तो बात ही क्‍या है, प्रचण्‍ड पवन के वेगपूर्वक हिलाने से भी किसी वृक्ष से असमय में फूल तक नहीं गिरता था; फिर फल कहाँ से गिरेगा? सभी धेनुएं दुग्‍ध आदि रस देती थीं। वे इच्‍छानुसार दुग्‍ध दिया करती थीं। किसी के मुख से कभी कोई कठोर वचन नहीं निकलता था। सम्‍पूर्ण कामनाओं को देनेवाले इन्‍द्र आदि देवताओं द्वारा की हुई लक्ष्‍मीजी की इस पूजा अर्चना के प्रसंग को जो लोग ब्राह्मणों की सभा में आकर पढ़ते है, उनकी सारी कामनाएँ सम्‍पन्‍न होती हैं और वे लक्ष्‍मी भी प्राप्‍त कर लेते हैं।

सम्‍पूर्ण कामनाओं को देनेवाले इन्‍द्र आदि देवताओं द्वारा की हुई लक्ष्‍मी जी की इस पूजा अर्चना के प्रसंग को जो लोग ब्राह्मणों की सभा में आकर पढ़ते हैं, उनकी सारी काँमनाएं सम्‍पन्‍न होती हैं और वे लक्ष्‍मी भी प्राप्‍त कर लेते है। कुरुश्रेष्ठ युधिष्ठिर! तुमने जो अभ्‍युदय पराभव का लक्षण पूछा था, वह सब मैंने आज यह उत्‍तम दृष्टान्‍त देकर बता दिया। तुम्‍हें स्‍वयं सोच विचार कर उसकी यथार्थता निश्‍चय करना चाहिये

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में लक्ष्‍मी और इन्‍द्र का संवादनामक दो सौ अट्ठाईसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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