सप्तर्विंशत्यधिकद्विशततम (227) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तर्विंशत्यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 67-82 का हिन्दी अनुवाद
देवेन्द्र! इस समय भयभीत करते हुए से तुम यहाँ अपने वाग्बाणों से मुछे छेदे डालते हो। मैं अपने को संयम रखकर शान्त बैठा हूँ; इसीलिये अवश्य तुम अपने बहुत बड़ा समझने लगे हो। देवराज! जिस काल का पहले मुझ पर धावा हुआ है, वही पीछे तुम पर भी चढ़ाई करेगा। मैं पहले काल से पीड़ित हो गया हूँ; इसीलिये तुम सामने खडे़ होकर गरज रहे हो। अन्यथा संसार में कौन ऐसा वीर है, जो युद्ध में कुपित होने पर मेरे सामने ठहर सके। इन्द्र! बलवान काल (अदृष्ट) ने मुझ पर आक्रमण किया है, इसी से तुम मेरे सम्मुख खडे़ हुए हो। देवताओं का वह सहस्रों वर्ष का समय अब पूरा होना ही चाहता है, जब तक कि तुम्हें इन्द्र के पद पर रहना है। काल के ही प्रभाव से मुझ महाबली वीर के अब सारे अंग उतने स्वस्थ नहीं रह गये हैं। मैं इन्द्रपद से गिरा दिया गया और तुम स्वर्ग में इन्द्र बना दिये गये। काल के उलट फेर से ही इस विचित्र जीवलोक में तुम सबके आराध्य बन गये हो। भला बताओं तो तुम कौन-सा शुभ कर्म करके आज इन्द्र हो गये और हम कौन-सा अशुभ कर्म करके इन्द्रपद से नीचे गिर गये। काल (प्रारब्ध) ही सबकी उत्पत्ति और संहार का कर्ता है। दूसरी सारी वस्तुएँ इसमें कारण नहीं मानी जा सकतीं; अत: विद्वान पुरुष नाश-विनाश, ऐश्वर्य, सुख-दु:ख, अभ्युदय या पराभव पाकर न तो अत्यन्त हर्ष माने और न अधिक व्यथित ही हो। इन्द्र! हम कैसे हैं, यह तुम्हीं अच्छी तरह जानते हो। वासव! मैं तुम्हें भली-भाँति जानता हूँ; फिर भी तुम लज्जा को तिलाजंलि दे क्यों मेरे सामने व्यर्थ आत्मश्लाघा कर रहे हो। वास्तव में काल ही यह सब कुछ कर रहा है। पहले मैं जो पुरुषार्थ प्रकट कर चुका हूँ, उसको सबसे अधिक तुम्हीं जानते हो। कई बार के युद्धों में तुम मेरा पराक्रम देख चुके हो। इस समय एक ही दृष्टान्त देना काफी होगा। शचीवल्लभ इन्द्र! पहले जब देवासुर संग्राम हुआ था, उस समय की बात तुम्हें अच्छी तरह याद होगी। मैंने अकेले ही समस्त आदित्यों, रुद्रों, साध्यों, वसुओं तथा मरूद्गणों को परास्त किया था। मेरे वेग से सब देवता युद्ध का मैदान छोड़कर एक साथ ही भाग खडे़ हुए थे। वन एवं वनवासियों सहित कितने ही पर्वत, मैने बारंबार तुम लोगों पर चलाये थे। तुम्हारे सिर पर भी सुदृढ़ पाषाण और शिखरों सहित बहुत से पर्वत मैंने फोड़ डाले थे; किंतु इस समय मैं क्या कर सकता हूँ; क्योंकि काल का उल्लघंन करना बहुत कठिन है। तुम्हारे हाथ में वज्र रहने पर भी मैं केवल मुक्के से मारकर तुम्हें यमलोक न पहुँचा सकूँ, ऐसी बात नहीं है। किंतु मेरे लिये यह पराक्रम दिखाने का नहीं, क्षमा करने का समय आया है। इन्द्र! यही कारण है कि मैं तुम्हारे सब अपराध चुपचाप सहे लेता हूँ। अब भी मेरा वेग तुम्हारे लिये अत्यन्त दु:सह है। किंतु जब समय ने पलटा खाया है, कालरूपी अग्नि ने मुझे सब ओर से घेर लिया है और मैं कालपाश से निश्चितरूप से बँध गया हूँ, तब तुम मेरे सामने खडे़ होकर अपनी झूठी बढ़ाई किये जा रहे हो। जैसे मनुष्य रस्सी से किसी पशु को बाँध लेता हैं, उसी प्रकार यह भयंकर कालपुरुष मुझे अपने पाश में बाँधे खड़ा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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