महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 141 श्लोक 20-36

एकचत्‍वारिंशदधिकशततम (141) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-36 का हिन्दी अनुवाद

सब और हड्डियों के ढेर लग गये। प्राणियों के महान आर्तनाद सब ओर व्‍यापत हो रहे थे। नगर के अधिकांश भाग उजाड़ हो गये थे तथा गाँव और घर जल गये थे। कहीं चोरों से, कहीं अस्त्र-शस्त्रों से, कहीं राजाओं से और कहीं क्षुधातुर मनुष्‍यों द्वारा उपद्रव खडा़ होने के कारण तथा पारस्‍परिक भय से भी वसुधा का बहुत बडा़ भाग उजाड़ होकर निर्जन बन गया था। देवालय तथा मठ-मंदिर आदि संस्‍थाएँ उठ गयी थीं, बालक और बूढे़ मर गये थे, गाय, भेड़, बकरी और भैंसें प्राय: समाप्‍त हो गयी थीं, क्षुधातुर प्राणी एक-दूसरे पर आघात करते थे। ब्राह्मण नष्ट हो गये थे। रक्षकवृंद का भी विनाश हो गया था, औषधियों के समूह (अनाज और फल आदि) भी नष्ट हो गये थे, वसुधा पर सब ओर समस्‍त प्राणियों का हाहाकर व्‍याप्‍त हो रहा था। युधिष्ठिर! ऐसे भयंकर समय में धर्म का नाश हो जाने के कारण भूख से पीड़ित हुए मनुष्‍य एक-दूसरे को खाने लगे। अग्नि के उपासक ऋषिगण नियम और अग्निहोत्र त्‍यागकर अपने आश्रमों को भी छोड़कर भोजन के लिये इधर-उधर दौड़ रहे थे।

इन्‍ही दिनों बुद्धिमान महर्षि भगवान विश्वामित्र भूख से पीड़ित हो घर छोड़कर चारों ओर दौड़ लगा रहे थे। उन्‍होनें अपनी पत्‍नी और पुत्रों को किसी जन-समुदाय में छोड़ दिया और स्‍वयं अग्निहोत्र तथा आश्रम त्‍यागकर भक्ष्‍य और अभक्ष्‍य में समान भाव रखते हुए विचरने लगे। एक दिन वे किसी वन के भीतर प्राणियों का वध करने वाले हिंसक चाण्‍डालों की बस्‍ती में गिरते-पड़ते जा पहुँचे। वहाँ चारों ओर टूटे-फूटे घरों के खपरे और ठीकरे बिखरे पड़े थे, कुत्‍तों के चमड़े छेदने वाले हथियार रखे हुए थे, सूअरों और गदहों की टूटी हड्डियाँ, खपड़े और घड़े वहाँ सब ओर भरे दिखायी दे रहे थे। मुर्दों के ऊपर से उतारे गये कपड़े चारों ओर फैलाये गये थे और वहीं से उतारे हुए फूल की मालाओं से उन चाण्‍डालों के घर सजे हुए थे। चाण्‍डालों की कुटियों और मठों को सर्प की केंचुलों की मालाओं से विभूषित एवं चिह्नित किया गया था। उस पल्‍ली में सब ओर मुर्गों की ‘कुकुहूकू’ की आवाज गूँज रही थी। गदहों के रेंकने की ध्‍वनि भी प्रतिध्‍वनित हो रही थी। वे चाण्‍डाल आपस में झगड़ा-फसाद करके कठोर वचनों के द्वारा एक-दूसरे को कोसते हुए कोलाहल मचा रहे थे। वहाँ कई देवालय थे, जिनके भीतर उल्‍लू पक्षी की आवाज गूँजती रहती थी। वहाँ के घरों को लोहे की घंटियों से सजाया गया था और झुंड-के-झुंड कुत्‍ते उन घरों को घेरे हुए थे।

उस बस्‍ती में घुसकर भूख से पीड़ित हुए महर्षि विश्वामित्र आहार की खोज में लगकर उसके लिये महान प्रयत्‍न करने लगे। विश्वामित्र वहाँ घर-घर घूम-घूमकर भीख माँगते फिरे, परंतु कहीं भी उन्‍हें मांस, अन्‍न, फल, मूल या दूसरी कोई वस्‍तु प्राप्‍त न हो सकी। ‘अहो! यह तो मुझ पर बड़ा भारी संकट आ गया।’ ऐसा सोचते-सोचते विश्वामित्र अत्‍यंत दुर्बलता के कारण वहीं एक चाण्‍डाल के घर में पृथ्‍वी पर गिर पड़े। नृपश्रेष्ठ! अब वे मु‍नि यह विचार करने लगे कि किस तरह मेरा भला होगा? क्‍या उपाय किया जाय, जिससे अन्‍न के बिना मेरी व्‍यर्थ मृत्‍यु न हो सके?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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