महाभारत वन पर्व अध्याय 39 श्लोक 40-59

एकोनचत्‍वारिंश (39) अध्‍याय: वन पर्व (कैरात पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: एकोनचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 40-59 का हिन्दी अनुवाद


‘यह कौन है? साक्षात् भगवान् रुद्रदेव, यक्ष, देवता अथवा असुर तो नहीं है। इस श्रेष्ठ पर्वत पर देवताओं का आना-जाना होता रहता है। मैंने सहस्रों बार जिन बाण-समूहों की वृष्टि की है, उनका वेग पिनाकधारी भगवान् शंकर के सिवा दूसरा कोई नहीं सह सकता। यदि यह रुद्रदेव से भिन्न व्यक्ति है तो यह देवता हो या यक्ष-मैं इसे तीखे बाणों से मारकर अभी यमलोक भेज देता हूँ।'

राजन! यह सोचकर प्रसन्नचित्त अर्जुन ने सहस्रों किरणों को फैलाने वाले भगवान भास्कर की भाँति सैकड़ों मर्मभेदी नाराचों का प्रहार किया, परन्तु त्रिशूलधारी भूतभावन भगवान् शिव ने हर्ष में भरे हृदय से उन सब नाराचों को उसी प्रकार आत्मसात् कर लिया, जैसे पर्वत पत्थरों की वर्षा को। उस समय एक ही क्षण में अर्जुन के सारे बाण समाप्त हो चले। उन बाणों का इस प्रकार विनाश देखकर उनके मन में बड़ा भय समा गया। विजयी अर्जुन ने उस समय भगवान् अग्निदेव का चिन्तन किया, जिन्होंने खाण्डव वन में प्रत्यक्ष दर्शन देकर उन्हें दो अक्षय तूणीर प्रदान किये थे। वे मन-ही-मन सोचने लगे, ‘मेरे सारे बाण नष्ट हो गये, अब मैं धनुष से क्या चलाऊँगा। यह कोई अद्भुत पुरुष है जो मेरे सारे बाणों को खाये जा रहा है। अच्छा, अब मैं शूल के अग्रभाग से घायल किये जाने वाले हाथी की भाँति इसे धनुष की कोटि (नोक) से मारकर दण्डधारी यमराज के लोक में पहुँचा देता हूं’।

ऐसा विचार कर महातेजस्वी अर्जुन ने किरात को अपने धनुष की कोटि से पकड़कर उसकी प्रत्यंचा में उसके शरीर को फंसाकर खींचा और वज्र के समान दुःसह मुष्टि प्रहार से पीड़ित करना आरम्भ किया। शत्रु वीरों का संहार करने वाले कुन्तीकुमार अर्जुन ने जब धनुष की कोटि से प्रहार किया, तब उस पर्वतीय किरात ने अर्जुन के उस दिव्य धनुष को भी अपने में लीन कर दिया। तदनन्तर धनुष के ग्रस्त हो जाने पर अर्जुन हाथ में तलवार लेकर खडे़ हो गये और युद्ध का अन्त कर देने की इच्छा से वेगपूर्वक उस पर आक्रमण किया। उनकी वह तलवार पर्वतों पर भी कुण्ठित नहीं होती थी। कुरुनन्दन अर्जुन ने अपनी भुजाओं की पूरी शक्ति लगाकर किरात के मस्तक पर उस तीक्ष्ण धार वाली तलवार से वार किया, परन्तु उसके मस्तक से टकराते ही वह उत्तम तलवार टूक-टूक हो गयी। तब अर्जुन ने वृक्षों और शिलाओं से युद्ध करना आरम्भ किया। तब विशालकाय किरातरूपी भगवान् शंकर ने उन वृक्षों और शिलाओं को भी ग्रहण कर लिया। यह देखकर महाबली कुन्तीकुमार अपने वज्रतुल्य मुक्कों से दुर्धर्ष किरात सदृश रूप वाले भगवान् शिव पर प्रहार करने लगे।

उस समय क्रोध के आवेश से अर्जुन के मुख से धूम प्रकट हो रहा था। तदनन्तर किरातरूपी भगवान् शिव भी अत्यन्त दारुण और इन्द्र के वज्र के समान दुःसह मुक्कों से मारकर अर्जुन को पीड़ा देने लगे। फिर तो घमासान युद्ध में लगे हुए पाण्डुनन्दन अर्जुन तथा किरातरूपी शिव के मुक्कों का एक दूसरे के शरीर पर प्रहार होने से बड़ा भयंकर ‘चट-चट’ शब्द होने लगा। वृत्रासुर और इन्द्र के समान उन दोनों का वह रोमांचकारी बाहुयुद्ध दो घड़ी तक चलता रहा। तत्पश्चात् बलवान वीर अर्जुन ने अपनी छाती से किरात को बड़े जोर से मारा, तब महाबली किरात ने भी विपरीत चेष्टा करने वाले पाण्डुनन्दन अर्जुन पर आघात किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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