महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 21-39

अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद


कानों का परदा फाड़ने वाले डंके की आवाज से सारी रणभूमि गूंज उठी थी। अतः वहाँ अपने पुरुषार्थ को प्रकट करने वाले किसी योद्धा की बात मुझे नही सुनायी देती थी। वे लोग जो आपस में नाम-गोत्र आदि का परिचय देते थे, उसे भी मैं नहीं सुन पाता था। युद्ध में भीष्म जी के धनुष से छूटे हुए बाणों से समस्त योद्धा पीड़ित हो रहे थे। उन बाणों ने परस्पर सभी वीरों के हृदय कँपा दिये थे। वह युद्ध अत्यन्त भयंकर, रोमांचकारी तथा सबका व्याकुल कर देने वाला था। उसमें कोई पिता अपने पुत्र को भी पहचान नहीं पाता था। भीष्म के बाणों से पहिये टूट गये, जूआ कट गया और एकमात्र बचा हुआ रथ का घोड़ा भी मारा गया। उस दशा में रथ पर बैठा हुआ सारथी सहित वीर रथी भी उनके बाणों से आहत होकर स्वर्ग सिधारा। इस प्रकार उस समरांगण में रथहीन हुए सभी वीर भिन्न-भिन्न मार्गों से सब और दौड़ते दिखाई देते थे। किसी का हाथी मारा गया, किसी का मस्तक कट गया, किसी के मर्मस्थान विदीर्ण हो गये और किसी का घोड़ा ही नष्ट हो गया। जब भीष्म जी शत्रुओं का संहार कर रहे थे, उस समय (उनके सम्मुख आया हुआ) कोई भी ऐसा विपक्षी नहीं बचा, जो घायल न हुआ हो।

इसी प्रकार उस महायुद्ध में श्वेत भी कौरवों का संहार कर रहे थे। उन्होंने सैकड़ों श्रेष्ठ रथी राजकुमारों का संहार कर डाला। भरतश्रेष्ठ! श्वेत ने अपने बाणों द्वारा बहुत-से रथियों के मस्तक काट डाले। उन्होंने सब ओर बाण मारकर कितने ही योद्धाओं के धनुष और बाजुबंद सहित भुजाएं काट डाली। रथ के ईषादण्ड, रथ-चक्र, तूणीर और जुए भी छिन्न-भिन्न कर दिये। राजन्! बहुमूल्य छत्र और पताकाएं भी उनके बाणों से खण्डित हो गयी। भरतनन्दन! श्वेत ने अश्वों, रथों और मनुष्यों के समुदाय का तो वध किया ही सैकड़ों हाथी भी मार गिराये। कुरुनन्दन! हम लोग भी श्वेत के भय से महारथी भीष्म को अकेला छोड़कर भाग खडे़ हुए। इसीलिये इस समय जीवित रहकर महाराज का दर्शन कर रहे हैं। हम सभी कौरव श्वेत का बाण जहाँ तक पहुँच पाता था, उतनी दूरी को लांघकर युद्धभूमि में खडे़ हो दर्शक की भाँति शान्तनुनन्दन भीष्म को देख रहे थे।

उस महान् संग्राम में हम लोगों के लिये कातरता का समय आ गया था, तो भी अकेले परश्रेष्ठ भीष्म ही दीनता से रहित हो मेरूपर्वत की भाँति अविचलभाव से खडे़ रहे थे। जैसे सर्दी के अन्त में सूर्यदेव धरती का जल सोखने लगते हैं, उसी प्रकार भीष्म समस्त सैनिकों के प्राणों का अपहरण-सा कर रहे थे। किरणों से सुशोभित सूर्यदेव की भाँति भीष्म बाणरूपी रश्मियों से शोभा पाते हुए वहाँ खडे़ थे। जैसे वज्रपाणि इन्द्र असुरों की संहार करते हैं, उसी प्रकार महाधनुर्धर भीष्म उस रणक्षेत्र में शत्रुओं का विनाश करते हुए बारंबार बाणसमूहों की वर्षा कर रहे थे। महाबली भीष्म जी अपने झुंड से बिछुडे़ हुए हाथी की भाँति आपकी सेना से विलग होकर उस रणभूमि में अत्यन्त भयंकर हो रहे थे उनकी मार खाकर सम्पूर्ण शत्रु उन्हें छोड़कर भाग गये।

परंतप! श्वेत को पूर्वोक्तरूप से कौरव-सेना का संहार करते देख एकमात्र भीष्म ही उत्साहित और प्रफुल हो पाण्डवों को शोक में डालते हुए जीवन का मोह और भय छोड़कर उस महासमर में दुर्योधन के प्रिय कार्य में जुट गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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