अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 40-61 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर पितामह भीष्म को श्वेत के द्वारा युद्ध से विमुख किया हुआ देख समस्त पाण्डवों को बड़ा हर्ष हुआ परन्तु आपके पुत्र दुर्योधन का मन उदास हो गया। तब दुर्योधन कुपित हो समस्त राजाओं तथा सेना के साथ उस युद्धभूमि में पाण्डव सेना पर आक्रमण किया। दुर्मुख, कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा राजा शल्य आपके पुत्र की आज्ञा से आकर भीष्म की रक्षा करने लगे। दुर्योधन आदि सब राजाओं के द्वारा पाण्डव सेना को युद्ध में मारी जाती देख श्वेत ने गंगापुत्र भीष्म को छोड़कर आपके पुत्र की सेना पर उसी प्रकार वेगपूर्वक विनाश आरम्भ किया, जैसे आंधी अपनी शक्ति से वृक्षों को उखाड़ फेंकती है। राजन्! विराटपुत्र श्वेत उस समय क्रोध से मूर्च्छित हो रहे थे। वे आपकी सेना को दूर भगाकर फिर सहसा वही आ पहुँचे, जहाँ भीष्म खडे़ थे। महाराज! वे दोनों महाबली महामना वीर बाणों से उदीप्त हो एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से समीप आकर वृत्रासुर और इन्द्र के समान युद्ध करने लगे। श्वेत ने धनुष खीचंकर सात बाणों द्वारा भीष्म को बेध डाला। तब पराक्रमी भीष्म ने श्वेत के उस पराक्रम को स्वयं पराक्रम करके वेगपूर्वक रोक दिया मानो किसी मतवाले हाथी ने दूसरे मतवाले हाथी को रोक दिया हो। तदनन्तर श्वेत ने पुनः झुकी हुई गांठ वाले पच्चीस बाणों से शान्तनुनन्दन भीष्म को बींध डाला। वह एक अद्भुत सी घटना हुई। तब शान्तनुनन्दन भीष्म ने भी दस बाण मारकर बदला चुकाया। उनके द्वारा घायल किये जाने पर भी बलवान श्वेत विचलित नहीं हुआ। वह पर्वत की भाँति अविचलभाव से खड़ा रहा। तदनन्तर क्षत्रिय कुल को आनन्दित करने वाले विराटकुमार श्वेत ने युद्ध में कुपित हो धनुष को जोर जोर से खींचकर भीष्म पर पुनः बाणों द्वारा प्रहार किया। इसके बाद उन्होंने हंसकर अपने मुंह के दोनों कोनों को चाटते हुए नौ बाण मारकर भीष्म के धनुष के दस टुकडे़ कर दिये। फिर शिखाशून्य पंखयुक्त बाण का संधान करके उसके द्वारा महात्मा भीष्म के ताल चिह्नयुक्त ध्वज का ऊपरी भाग काट डाला। भीष्म के ध्वज को नीचे गिरा देख आपके पुत्रों ने उन्हे श्वेत के वश में पकड़कर मरा हुआ ही माना। महात्मा भीष्म के तालध्वज को पृथ्वी पर पड़ा देख पाण्डव हर्ष उल्लासित हो प्रसन्नतापूर्वक शंख बजाने लगे। तब दुर्योधन ने क्रोधपूर्वक अपनी सेना को आदेश दिया। ‘वीरो! सावधान होकर सब और से भीष्म की रक्षा करते हुए उन्हें घेरकर खडे़ हो जाओ। कहीं ऐसा न हो कि ये हमारे देखते-देखते श्वेत के हाथों से मारे जायें। मैं तुम लोगों को सत्य कहता हूँ कि शान्तनुनन्दन भीष्म महान् शूरवीर हैं’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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