महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 9 श्लोक 19-35

नवम (9) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-35 का हिन्दी अनुवाद
  • क्‍या द्रोणाचार्य के रथ को वहन करने वाले वे शीघ्रगामी अश्‍व पराजित हो गये थे? तात! द्रोणाचार्य के सुवर्णमय रथ में जुते हुए और उन्‍हीं नरवीर आचार्य की सवारी में काम आने वाले वे घोड़े पाण्डव सेना को पार कैसे नहीं कर सके? (19)
  • उस सुवर्णभूषित उत्तम र‍थ पर आरूढ़ हो सत्‍यपराक्रमी द्रोणाचार्य ने युद्धस्‍थल में क्‍या? (20)
  • समस्‍त जगत के धनुर्धर जिनकी विधा का आश्रय लेकर जीवन-निर्वाह करते हैं, उन सत्‍यपराक्रमी बलवान द्रोणाचार्य ने युद्ध में क्‍या किया? (21)
  • स्‍वर्ग में देवराज इन्‍द्र के समान जो इस लोक में श्रेष्‍ठ और समस्‍त धनुर्धरों में महान थे, उन भयंकर कर्म करने वाले द्रोणाचार्य का सामना करने के लिये उस रणक्षेत्र में कौन-कौन से रथी गये थे? (22)
  • उस समरांगण में दिव्‍य अस्‍त्रों का प्रयोग करने वाले तथा सुवर्णमय रथ पर आरूढ़ हुए महाबली द्रोणाचार्य को देखकर तो समस्‍त पाण्‍डव योद्धा भाग खड़े होते थे। (23)
  • भाइयों सहित धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी सारी सेना के साथ जाकर धृष्टद्युम्नरूपी डोरी की सहायता से द्रोणाचार्य को घेर तो नहीं लिया? (24)
  • निश्‍चय ही अर्जुन ने अपने सीधे जाने वाले बाणों के द्वारा अन्‍य रथियों को आगे बढ़ने से रोक दिया था। इसलिये पापकर्मा धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य पर चढ़ाई कर सका। (25)
  • किरीटधारी अर्जुन के द्वारा सुरक्षित भयंकर स्‍वभाव वाले धृष्‍टद्युम्न को छोड़कर दूसरे किसी को मैं ऐसा नहीं देखता, जो अत्‍यन्‍त तेजस्‍वी द्रोणाचार्य के वध में समर्थ हो। (26)
  • केकय, चेदि, कारूष, मत्स्य देशीय सैनिकों तथा अन्‍य भूमिपालों ने आचार्य को उसी प्रकार व्‍याकुल कर दिया होगा, जैसे बहुत-सी चींटियाँ सर्प का विह्बल कर देती हैं; उसी अवस्‍था में उन पाण्‍डव सैनिकों द्वारा सब ओर से घिरे हुए नीच धृष्टद्युम्न ने दुष्‍कर कर्म में लगे हुए द्रोणाचार्य को मार डाला होगा, यही बात मेरे मन में आती है। (27-28)
  • जो छहों अंगों तथा पंचम वेद स्‍थानीय इतिहास-पुराणों सहित चारों वेदों का अध्‍ययन करके ब्राह्मणों के लिये उसी प्रकार आश्रय बने हुए थे, जैसे नदियों के लिये समुद्र हैं। जो शत्रुओं को संताप देने वाले तथा ब्राह्मण एवं क्षत्रिय दोनों के धर्मों का अनुष्‍ठान करने वाले थे, वे वृद्ध ब्राह्मण द्रोणाचार्य शस्त्र द्वारा कैसे मारे गये? (29-30)
  • मैने अमर्ष में भरकर सदा कष्‍ट भोगने के अयोग्‍य कुन्‍तीकुमारों को क्‍लेश ही दिया है; परंतु मेरे इस बर्ताव को द्रोणाचार्य ने चुपचाप सह लिया था। उनके उसी कर्म का यह वधरूपी फल प्राप्‍त हुआ है। (31)
  • जगत के सम्पूर्ण धनुधर जिनके शिक्षणरूपी कर्म का आश्रय लेकर जीवन-निर्वाह करते हैं, उन सत्यप्रतिज्ञ पुण्यात्मा द्रोणाचार्य को राजलक्ष्मी के लोभियों ने कैसे मार डाला? (32)
  • स्‍वर्ग लोक में इन्‍द्र के समान जो इस लोक में सबसे श्रेष्‍ठ थे, उन महान सत्त्वशाली, महाबली द्रोणाचार्य को कुन्‍ती के पुत्रों ने उसी प्रकार मार डाला, जैसे छोटे मत्‍स्‍यों ने मिलकर तिमि नामक महामत्‍स्‍य को मार डाला हो। यह कैसे सम्‍भव हुआ? (33)
  • जो शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले, बलवान, दृढ़धन्वा तथा शत्रुओं का मर्दन करने वाले थे, कोई भी विजयाभिलाषी वीर जिनके बाणों का लक्ष्‍य बन जाने पर जीवित नहीं रह सकता था, जिन्‍हें जीते जी दो शब्‍दों ने कभी नहीं छोड़ा था- एक तो वेदाध्‍ययन की इच्‍छा वाले लोगों के समक्ष वेदध्‍वनि का शब्‍द और दूसरा धनुर्धारियों के बीच में प्रत्‍यंचा की टंकार का शब्‍द। (34-35)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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