महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 91 श्लोक 34-47

एकनवतितम (91) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 34-47 का हिन्दी अनुवाद

तब बहुत अच्छा कहकर अर्जुन ने भगवान की उस आज्ञा को सादर शिरोधार्य किया और उस प्रज्वलित बाण को हाथ में लेकर जिसका पहिया फँसा हुआ था, कर्ण के उस विशाल रथ पर फहराती हुई सूर्य के समान प्रकाशमान ध्वजा पर प्रहार किया। हाथी की साँकल के चिह्न से युक्त उस श्रेष्ठ ध्वजा के पृष्ठ भाग में सुवर्ण, मुक्ता, मणि और हीरे जडे़ हुए थे। अत्यन्त ज्ञानवान एवं उत्तम शिल्पियों ने मिलकर उस सुवर्णजटित सुन्दर ध्वज का निर्माण किया था। वह विश्वविख्यात ध्वजा आपकी सेना की विजय का आधार स्तम्भ होकर सदा शत्रुओं को भयभीत करती थी। उसका स्वरूप प्रशंसा के भी योग्य था। वह अपनी प्रभा से सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि की समानता करती थी। किरीटधारी अर्जुन ने सोने के पंखवाले और आहुति से प्रज्वलित हुई अग्नि के समान तेजस्वी उन तीखे क्षुरप्र से महारथी कर्ण के उस ध्वज को नष्ट कर दिया, जो अपनी प्रभा से निरन्तर देदीप्यमान होता रहता था। कटकर गिरते हुए उस ध्वज के साथ ही कौरवों के यश, अभिमान, समस्त प्रिय कार्य तथा हृदय का भी पतन हो गया और चारों ओर महान हाहाकार मच गया।

भारत! शीघ्रकारी कौरव वीर अर्जुन के द्वारा युद्धस्थल में उस ध्वज को काटकर गिराया हुआ देख उस समय आपके सभी सैनिकों ने सूतपुत्र की विजय की आशा त्याग दी। तदनन्तर कर्ण के वध के लिये शीघ्रता करते हुए अर्जुन ने अपने तरकस से एक अंजलिक नामक बाण निकाला, जो इन्द्र के वज्र और अग्नि के दण्ड के समान भयंकर तथा सूर्य की एक उत्तम किरण किरण के समान कान्तिमान था। वह शत्रु के मर्मस्थल को छेदने में समर्थ, रक्त और मांस से लिप्त होने वाला, अग्नि तथा सूर्य से तुल्य तेजस्वी, बहुमूल्य, मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों के प्राण लेने वाला, मूठी बँधे हुए हाथ से तीन हाथ बड़ा, छः पंखों से युक्त, शीघ्रगामी, भयंकर वेगशाली, इन्द्र के वज्र के तुल्य पराकम प्रकट करने वाला, मूँह बाये हुए कालग्नि के समान अत्यन्त भयानक, भगवान शिव के पिनाक और नारायण के चक्र-सदृश भयदायक तथा प्राणियों का विनाश करने वाला था। देवताओं के समुदाय भी जिनकी गति को अनायास नहीं रोक सकते, जो सदा सबके द्वारा सम्मानित, महामनस्वी, विशाल बाण धारण करने वाले और देवताओं तथा असुरों पर भी विजय पाने में समर्थ है, उन कुन्तीकुमार अर्जुन ने अत्यन्त प्रसन्न होकर उस बाण को हाथ में लिया।

महायुद्ध में उस बाण को हाथ में लिया और ऊपर उठाया गया देख समस्त चराचर जगत काँप उठा। ऋषि लोग जोर-जोर से पुकार उठे कि जगत का कल्याण हो! तत्पश्चात गाण्डीवधारी अर्जुन ने उस अप्रमेय शक्तिशाली बाण को धनुष पर रखा और उसे उत्तम एवं महान दिव्यास्त्र से अभिमंत्रित करके तुरन्त ही गाण्डीव को खींचते हुए कहा-यह महान दिव्यास्त्र प्रेरित महाबाण शत्रु के शरीर, हृदय और प्राणों का विनाश करने वाला है। यदि मैंने तप किया हो, गुरुजनों को सेवा द्वारा संतुष्ट हो, यज्ञ किया हो और हितैषी मित्रों की बातें ध्यान देकर सुनी हो तो इस सत्य के प्रभाव से यह अच्छी तरह संधान किया हुआ बाण मेरे शक्तिशाली शत्रु कर्ण का नाश कर डाले, ऐसा कहकर धनंजय ने उस घोर बाण को कर्ण के वध के लिये छोड़ दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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