महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 91 श्लोक 15-33

एकनवतितम (91) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 15-33 का हिन्दी अनुवाद

संजय कहते हैं‌- भारत! उस समय भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर कर्ण ने लज्जा से अपना सिर झुका लिया, उससे कुछ भी उत्तर देते नहीं बना। भरतनन्दन! वह महान वेग और पराक्रम से सम्पन्न हो क्रोध से ओंठ फड़फड़ाता हुआ धनुष उठाकर अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा। तब वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ने पुरुष प्रवर अर्जुन से इस प्रकार कहा- महाबली वीर! तुम कर्ण को दिव्यास्त्र से ही घायल करके मार गिराओ। भगवान के ऐसा कहने पर अर्जुन उस समय कर्ण के प्रति अत्यन्त कुपित हो उठे। उसकी पिछली करतूतों को याद करके उनके मन में भयानक रोष जाग उठा। कुपित होने पर उनके सभी छिद्रों से रोम-रोम से आग की चिनगारियाँ छूटने लगीं। राजन! उस समय यह एक अद्भुत-सी बात हुई।

यह देख कर्ण ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके बाणों की झड़ी लगा दी और पुनः रथ को उठाने का प्रयत्न किया। तब पाण्डुपुत्र अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र से ही उसके अस्त्र को दबाकर उसके ऊपर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी और उसे अच्छी तरह घायल कर दिया। तदनन्तर कुन्तीकुमार ने कर्ण को लक्ष्य करके दूसरे दिव्यास्त्र का प्रयोग किया, जो जातवेदा अग्नि का प्रिय अस्त्र था। वह आग्नेयास्त्र अपने तेज से प्रज्वलित हो उठा। परंतु कर्ण ने वारुणास्त्र का प्रयोग करके उस अग्नि को बुझा दिया। साथ ही सम्पूर्ण दिशाओं में मेघों की घटा घिर आयी और सब ओर अन्धकार छा गया। पराक्रमी अर्जुन इससे विचलित नहीं हुए। उन्होंने राधापुत्र कर्ण के देखते-देखते वायव्यास्त्र से उन बादलों को उड़ा दिया।

तब सूतपुत्र ने पाण्डुकुमार अर्जुन का वध करने के लिये जलती हुई आग के समान एक महाभयंकर बाण हाथ में लिया। उस उत्तम बाण को धनुष पर चढ़ाते ही पर्वत, वन और काननों सहित सारी पृथ्वी डगमगाने लगी। भारत! कंकड़ों की वर्षा करती हुई प्रचण्ड वायु चलने लगी। सम्पूर्ण दिशाओं में धूल छा गयी और स्वर्ग के देवताओं में भी हाहाकार मच गया। माननीय नरेश! जब सूतपुत्र उस बाण का संधान किया, उस समय उसे देखकर समस्त पाण्डव दीनचित्त हो बड़े भारी विषाद में डूब गये। कर्ण के हाथ से छूटा हुआ वह बाण इन्द्र के वज्र के समान प्रकाशित हो रहा था। उसका अग्रभाग बहुत तेज था। वह अर्जुन की छाती में जा लगा और जैसे उत्तम सर्प बाँबी में घुस जाता है, उसी प्रकार वह उनके वक्षःस्थल में समा गया। समरांगण में उस बाण की गहरी चोट खाकर महात्मा अर्जुन को चक्कर आ गया। गाण्डीव धनुष पर रखा हुआ उनका हाथ ढीला पड़ गया और वे शत्रुमर्दन अर्जुन भूकम्प के समय हिलते हुए श्रेष्ठ पर्वत के समान काँपने लगे।

इसी बीच में मौका पाकर महारथी कर्ण ने धरती में घँसे हुए पहिये को निकालने का विचार किया। वह रथ से कूद पड़ा और दोनों हाथों से पकड़कर उसे ऊपर उठाने की कोशिश करने लगा; परंतु महाबलवान होने पर भी वह दैव वश अपने प्रयास में सफल न हो सका। इसी समय होश में आकर किरीटधारी महात्मा अर्जुन ने यमदण्ड के समान भयंकर आंचलिक नामक बाण हाथ में लिया। यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन से कहा- पार्थ! कर्ण जब तक रथ पर नहीं चढ़ जाता, तब तक ही अपने बाण के द्वारा इस शत्रु का मस्तक काट डालो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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