अष्टपन्चाशदधिकशततम (158) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासनपर्व: अष्टपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-46 का हिन्दी अनुवाद
राजन! इन्होंने ही इस विश्व को उत्पन्न किया है और ये ही आत्मयोनि श्रीकृष्ण अपनी ही शक्ति से सबको जीवन प्रदान करते हैं। देवता, असुर, मनुष्य, लोक, ऋषि, पितर, प्रजा और संक्षेपतः सम्पूर्ण प्राणियों को इन्हीं से जीवन मिलता है। ये भगवान भूतनाथ ही सदा विधिपूर्वक समस्त भूतों की सृष्टि की इच्छा रखते हैं। शुभ-अशुभ और स्थावर-जंगमरूप यह सारा जगत श्रीकृष्ण से उत्पन्न हुआ है, इस बात पर विश्वास करो। भूत, भविष्य और वर्तमान सब श्रीकृष्ण का ही स्वरूप हैं। यह तुम्हें अच्छी तरह समझ लेना चाहिये। प्राणियों का अन्तकाल आने पर साक्षात श्रीकृष्ण ही मृत्यु रूप बन जाते हैं। ये धर्म के सनातन रक्षक हैं। जो बात बीत चुकी है तथा जिसका अभी कोई पता नहीं है, वे सब श्रीकृष्ण से ही प्रकट होते हैं, यह निश्चित रूप से जान लो। तीनों लोकों में जो कुछ भी उत्तम, पवित्र तथा शुभ या अशुभ वस्तु है, वह सब अचिन्त्य भगवान श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है, श्रीकृष्ण से भिन्न कोई वस्तु है, ऐसा सोचना अपनी विपरीत बुद्धि का ही परिचय देना है। भगवान श्रीकृष्ण की ऐसी ही महिमा है। बल्कि ये इससे भी अधिक प्रभावशाली हैं। ये ही परम पुरुष अविनाशी नारायण हैं। ये ही स्थावर-जंगमरूप जगत के आदि, मध्य और अन्त हैं तथा संसार में जन्म लेने की इच्छा वाले प्राणियों की उत्पत्ति के कारण भी ये ही हैं। इन्हीं को अविकारी परमात्मा कहते हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में महापुरुष माहात्म्य विषयक एक सौ अट्ठावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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