अष्टषष्टितम (68) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
अर्जुन बोले- भैया भीमसेन! तुमने पहले कभी ऐसी बातें नहीं कही थीं। निश्चय ही क्रूरकर्मा शत्रुओं ने तुम्हारी धर्मविषयक गौरव बुद्धि को नष्ट कर दिया है। भैया! शत्रुओं की कामना सफल न करो; उत्तम धर्म का ही आचरण करो। भला, अपने धर्मात्मा ज्येष्ठ भ्राता का अपमान कौन कर सकता है? महाराज युधिष्ठिर को शत्रुओं ने द्यूत के लिये बुलाया है; अत: ये क्षत्रियव्रत को ध्यान में रखकर दूसरों की इच्छा से जूआ खेलते हैं। यह हमारे महान् यश का विचार करने वाला है। भीमसेन ने कहा- अर्जुन! यदि मैं इस विषय में यह न जानता कि इनका यह कार्य क्षत्रिय धर्म के अनुकूल ही है, तो बलपूर्वक प्रज्वलित अग्नि में इनकी दोनों बाँहों को एक साथ ही जलाकर राख कर डालता। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! पाण्डवों को दुखी और पांचाल राजकुमारी द्रौपदी को घसीटी जाती हुई देख धृतराष्ट्रनन्दन विकर्ण ने यह कहा- ‘भूमिपालो! द्रौपदी ने जो प्रश्न उपस्थित किया है, उसका आप लोग उत्तर दें। यदि इसके प्रश्न का ठीक-ठीक विवेचन नहीं किया गया, तो हमें शीघ्र ही नरक भोगना पड़ेगा। पितामह भीष्म और पिता धृतराष्ट्र -ये दोनों कुरुवंश के सबसे वृद्ध पुरुष हैं। ये तथा परम बुद्धिमान विदुर जी मिलकर कुछ उत्तर क्यों नहीं देते? हम सबके आचार्य भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य और कृपाचार्य ये दोनों ब्राह्मण कुल के श्रेष्ठ पुरुष हैं। ये दोनों भी इस प्रश्न पर अपने विचार क्यों नहीं प्रकट करते? जो दूसरे राजा लोग चारों दिशाओं से यहाँ पधारे हैं, वे सभी काम और क्रोध को त्यागकर अपनी बुद्धि के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर दें। राजाओ! कल्याणी द्रौपदी ने बार-बार जिस प्रश्न को दुहराया है, उस पर विचार करके आप लोग उत्तर दें, जिससे मालूम हो जाय कि इस विषय में किसका क्या पक्ष (विचार) है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज