तृतीय (3) अध्याय: सौप्तिक पर्व
महाभारत: सौप्तिक पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 18-36 का हिन्दी अनुवाद
मैं दिव्य धनुष और दिव्य अस्त्रों को धारण करता हूँ तो भी युद्ध में अपने पिता को अन्यायपूर्वक मारा गया देखकर यदि उसका बदला न लूँ तो वीरों की सभा में क्या कहूँगा? अत: आज मैं अपनी रुचि के अनुसार उस क्षत्रियधर्म का सहारा लेकर अपने महात्मा पिता तथा राजा दुर्योधन के पथ का अनुसरण करूँगा। आज अपनी जीत हुई जान विजय से सुशोभित होने वाले पांचाल योद्धा बड़े हर्ष में भरकर कवच उतार, जूओं में जुते हुए घोड़ों को खोलकर बेखटके सो रहे होंगे। वे थके तो होंगे ही, विशेष परिश्रम के कारण चूर-चूर हो गये होंगे। रात में सुस्थिर चित्त से सोये हुए उन पांचालों के अपने ही शिविर में घुसकर मैं उन सबका संहार कर डालूँगा। समूचे शिविर का ऐसा विनाश करूँगा जो दूसरों के लिये दुष्कर है। जैसे इन्द्र दानवों पर आक्रमण करते हैं, उसी प्रकार मैं भी शिविर में मुर्दों के समान अचेत पड़े हुए पांचालों की छाती पर चढ़कर उन्हें पराक्रमपूर्वक मार डालूँगा। साधुशिरोमणे! जैसे जलती हुई आग सूखे जंगल या तिनकों की राशि को जला डालती हैं, उसी प्रकार आज मैं एक साथ सोये हुए धृष्टद्युम्न आदि समस्त पांचालों पर आक्रमण करके उन्हें मौत के घाट उतार दूँगा। उनका संहार कर लेने पर ही मुझे शान्ति मिलेगी। जैसे प्रलय के समय क्रोध में भरे हुए साक्षात पिनाकधारी रुद्र समस्त पशुओं (प्राणियों) पर आक्रमण करते हैं, उसी प्रकार आज युद्ध में पांचालों का विनाश करता हुआ उनके लिये कालरूप हो जाऊँगा। आज मैं रणभूमि में समस्त पांचालों को मारकर उनके टुकड़े-टुकड़े करके हर्ष और उत्साह से सम्पन्न हो पाण्डवों को भी कुचल डालूँगा। आज समस्त पांचालों के शरीरों से रणभूमि को शरीरधारिणी बनाकर एक-एक पांचाल पर भरपूर प्रहार करके मैं अपने पिता के ऋण से मुक्त हो जाऊँगा। आज पांचालों को दुर्योधन, कर्ण, भीष्म तथा जयद्रथ के दुर्गम मार्ग पर भेजकर छोड़ूँगा। आज रात में मैं शीघ्र ही पांचालराज धृष्टद्युम्न के सिर को पशु के मस्तक की भाँति बलपूर्वक मरोड़ डालूँगा। गौतम! आज रात के युद्ध में सोये हुए पांचालों और पाण्डवों के पुत्रों को भी मैं अपनी तीखी-तलवार से टूक-टूक कर दूँगा। महामते! आज रात को सोते समय उस पाञ्चाल सेना का वध करके मैं कृतकृत्य एवं सुखी हो जाऊँगा।
इस प्रकार श्री महाभारत सौप्तिक पर्व में अश्वत्थामा की मन्त्रणाविषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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