महाभारत सभा पर्व अध्याय 5 श्लोक 47-58

पंचम (5) अध्‍याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)

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महाभारत: सभा पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 47-58 का हिन्दी अनुवाद


  • क्या तुम्हारा सेनापति हर्ष और उत्साह से सम्पन्‍न, शूर-वीर, बुद्धिमान, धैर्यवान, पवित्र, कुलीन, स्वामिभक्त तथा अपने कार्य में कुशल है? (47)
  • तुम्हारी सेना के मुख्य-मुख्य दलपति सब प्रकार के युद्धों में चतुर, धृष्ट[1], निष्कपट और पराक्रमी हैं न? तुम उनका यथोचित सत्कार एवं सम्मान करते हो न? (48)
  • अपनी सेना के लिये यथोचित भोजन और वेतन ठीक समय पर दे देते हो न? जो उन्हें दिया जाना चाहिये, उसमें कमी या विलम्ब तो नहीं कर देते? (49)
  • भोजन और वेतन में अधिक विलम्ब होने पर भृत्यगण अपने स्‍वामी पर कुपित हो जाते हैं और उनका वह कोप महान अनर्थ का कारण बताया गया है। (50)
  • क्या उत्तम कुल में उत्पन्‍न मन्त्री आदि सभी प्रधान अधिक सभी प्रधान अधिकारी तुमसे प्रेम रखते हैं? क्या वे युद्ध में तुम्हारे हित के लिये अपने प्राणों तक का त्याग करने को सदा तैयार रहते हैं? (51)
  • तुम्हारे कर्मचारियों में कोई ऐसा तो नहीं है, जो अपनी इच्छा के अनुसार चलने वाला और तुम्हारे शासन का उल्लंघन करने वाला हो तथा युद्ध के सारे साधनों एवं कार्यों को अकेला ही अपनी रुचि के अनुसार चला रहा हो? (52)
  • कोई[2] पुरुष अपने पुरुषार्थ से जब किसी कार्य को अच्छे ढंग से सम्पन्‍न करता है, तब वह आप से अधिक सम्मान अथवा अधिक भत्ता और वेतन पाता है न? (53)
  • क्या तुम विद्या से विनयशील एवं ज्ञाननिपुण मनुष्यों को उनके गुणों के अनुसार यथायोग्य धन आदि देकर उनका सम्मान करते हो? (54)
  • भरतश्रेष्ठ! जो लोग तुम्हारे हित के लिये सहर्ष मृत्यु का वरण कर लेते हैं अथवा भारी संकट में पड़ जाते हैं, उनके बाल-बच्चों की रक्षा तुम करते हो न? (55)
  • कुन्तीनन्दन! जो भय से अथवा अपनी धन-सम्पत्ति का नाश होने से तुम्हारी शरण में आया हो या युद्ध में तुमसे परास्त हो गया हो, ऐसे शत्रु का तुम पुत्र के समान पालन करते हो या नहीं? (56)
  • पृथ्वीपते! क्या समस्त भूमण्डल की प्रजा तुम्हें ही समदर्शी एवं माता-पिता के समान विश्वसनीय मानती है? (57)
  • भरत कुलभूषण! क्या तुम अपने शत्रु को[3]दुर्व्यसनों में फँसा हुआ सुनकर उसके त्रिविध बल[4] पर विचार करके यदि वह दुर्बल हो तो उसके ऊपर बड़े वेग से आक्रमण कर देते हो? (58)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. निर्भय
  2. तुम्हारे यहाँ काम करने वाला
  3. स्त्री-द्यूत आदि
  4. मन्त्र, कोष एवं भृत्य-बल अथवा प्रभुशक्ति, मन्त्र शक्ति एवं उत्साह शक्ति

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