पंचम (5) अध्याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 59-66 का हिन्दी अनुवाद
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विजय के इच्छुक राजा के आगे खड़े होने वाले उस के शत्रु के शत्रु 2, उन शत्रुओं के मित्र 2, उन मित्रों के मित्र 2 - ये छः व्यक्ति युद्ध में आगे खड़े होते हैं। विजिगीषु के पीछे पार्ष्णिग्रह(पृष्ठरक्षक) और आक्रन्द(उत्साह दिलाने वाला)- ये दो व्यक्ति खड़े होते हैं। इन दोनों की सहायता करने वाले एक-एक व्यक्ति इनके पीछे खड़े होते हैं, जिनकी आसार संज्ञा है। ये क्रमशः पार्ष्णिग्राहासार और आक्रन्दासार कहे जाते हैं। इस प्रकार आगे के छः और पीछे के चार मिलकर कहे जाते हैं। विजिगीषु के पार्श्व भाग में मध्यम और उसके भी पार्श्व भाग में उदासीन होता है। इन दोनों को जोड़ लेने से इन सबकी संख्या बारह होती है। इन्हीं को द्वादश राजतण्डल अथवा ‘पार्ष्णिमूल’ कहते हैं। अपने और शत्रु पक्ष के इन व्यक्तियों को जानना चाहिये।
- ↑ समुदाय
- ↑ नीति शास्त्र के अनुसार विजय की इच्छा रखने वाले राजा को चाहिये कि वह शत्रु पक्ष के सैनिकों में से जो लोभी हो, किंतु जिसे वेतन न मिला हो, जो मानी हो किंतु किसी तरह अपमानित हो गया हो, जो क्रोधी हो और उसे क्रोध दिलाया गया हो, जो स्वभाव से ही डरने वाला हो और उसे पुनः डरा दिया गया हो- इन चार प्रकार के लोगों को फोड़ ले और अपने पक्ष में ऐसे लोग हों, तो उन्हें उचित सम्मान देकर मिला ले।
- ↑ व्यसन दो प्रकार के हैं- दैव और मानुष। दैव व्यसन पाँच प्रकार के हैं- अग्नि, जल, व्याधि, दुर्भिक्ष और महामारी। मानुष व्यसन भी पाँच प्रकार का है- मूर्ख पुरुषों से, चोरों से, शत्रुओं से, राजा के प्रिय व्यक्ति से तथा राजा के लोभ से प्रजा को प्राप्त भय। (नीलकंठी टीका के अनुसार)
- ↑ क्योंकि शत्रुओं को वश में करने के लिये इनका प्रयोग आवश्यक है।
- ↑ आठ अंग और चार बल भारत कौमुदी टीका के अनुसार लिये गये हैं।
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