अष्टात्रिंश (38) अध्याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 37 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर भगवान वासुदेव और महेश्वर परस्पर युद्ध करने लगे। उनका वह युद्ध अचिन्त्य, रोमांचकारी तथा भयंकर था। वे दोनों देवता एक दूसरे पर विजय पाने की इच्छा से परस्पर प्रहार करने लगे। दोनों ही क्रोध में भरकर एक दूसरे पर दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते थे। तदनन्तर भगवान श्रीकृष्ण ने शूलपाणि भगवान शंकर के साथ दो घड़ी तक युद्ध करके महादेव जी को जीत लिया तथा द्वार पर खड़े हुए अन्य शिवगणों को भी परास्त करके उस उत्तम नगर में प्रवेश किया। पाण्डुनन्दन! पुरी में प्रवेश करके अत्यन्त क्रोध में भरे हुए श्रीजनार्दन ने बाणासुर के पास पहुँचकर उसके साथ युद्ध छेड़ दिया। भरतश्रेष्ठ! बाणासुर भी क्रोध से आग बबूला हो रहा था। उसने भी युद्ध में भगवान केशव पर सभी तीखे-तीखे अस्त्र शस्त्र चलाये। फिर उसने उद्योपूर्वक अपनी सभी भुजाओं से उस समरांगण में कुपित हो श्रीकृष्ण पर सहस्रों शस्त्रों का प्रहार किया। भारत! परंतु श्रीकृष्ण ने वे सभी शस्त्र काट डाले। राजन्! तदनन्तर भगवान अधोक्षज ने दो घड़ी तक बाणासुर के साथ युद्ध करके अपना दिव्य उत्तम शस्त्र चक्र हाथ में उठाया और अमित तेजस्वी बाणासुर की सहस्र भुजाओं को काट दिया। महाराज! तब श्रीकृष्ण द्वारा अत्यन्त पीड़ित होकर बाणासुर भुजाएँ कट जाने पर शाखाहीन वृक्ष की भाँति धरती पर गिर पड़ा। इस प्रकार बलिपुत्र बाणासुर को रणभूमि में गिराकर श्रीकृष्ण ने बड़ी उतावली के साथ कैद में पड़े हुए प्रद्युम्नकुमार अनिरुद्ध को छुड़ा लिया। पत्नी सहित अनिरुद्ध को छुड़ाकर भगवान गोविन्द ने बाणासुर के सभी प्रकार के असंख्य रत्न हर लिये। उसके घर में जो भी गोधन अथवा अन्य किसी प्रकार के धन मौजूद थे, उन सबको भी यहुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाले भगवान हृषीकेश ने हर लिया। फिर वे सब रत्न लेकर मधुसूदन ने शीघ्रतापूर्वक रख लिये। कुन्तीनन्दन! तत्पश्चात उन्होंने महाबली बलदेव, अमितपराक्रमी प्रद्युम्न, परम कान्तिमान अनिरुद्ध तथा सेवकों और दासियों सहित सुन्दरी उषा- इन सबको और नाना प्रकार के रत्नों को भी गरुड़ पर चढ़ाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज