चतुर्विंश (24) अध्याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: चतुर्विंश अध्याय: श्लोक 25-41 का हिन्दी अनुवाद
प्रभो! हम सब राजा दु:खरूपी पंक से युक्त जरासंध रूपी भयानक कुण्ड में डूब रहे थे, आपने जो आज हमारा यह उद्धार किया है, वह आपके योग्य ही है। विष्णो! अत्यन्त भयंकर पहाड़ी किले में कैद हो हम बड़े दु:ख से दिन काट रहे थे। यदुनन्दन! आपने हमें इस संकट से मुक्त करके अत्यन्त उज्ज्वल यश प्राप्त किया है, यह बड़े सौभाग्य की बात है। पुरुषसिंह! हम आपके चरणों में पड़े हैं। आप हमें आज्ञा दीजिये, हम क्या सेवा करें? कोई दुष्कर कार्य हो तो भी आपको यह समझना चाहिये मानो हम सब राजाओं ने मिलकर उसे पूर्ण कर ही दिया’। तब महामाना भगवान् हृषीकेश ने उन सबको आश्वासन देकर कहा- ‘राजाओ! धर्मराज युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करना चाहते हैं। धर्म में तत्पर रहते हुए ही उन्हें सम्राट् पद प्राप्त करने की इच्छा हुई है। इस कार्य में तुम सब लोग उनकी सहायता करो’। नृपश्रेष्ठ जनमेजय! तब उन सभी राजाओं ने प्रसन्नचित्त हो ‘तथास्तु’ कहकर भगवान् की वह आशा शिरोधार्य कर ली। इतना ही नहीं, उन भूपालों ने दशार्हकुलभूषण भगवान को रत्न भेंट किये। भगवान् गोविन्द ने बड़ी कठिनाई से, उन सब पर कृपा करने के लिये ही, वह भेंट स्वीकार की। तदनन्तर जरासंध का पुत्र महामना सहदेव पुरोहित को आगे करके सेवकों और मन्त्रियों के साथ नगर से बाहर निकला। उसके आगे रत्नों का बहुत बड़ा भण्डार आ रहा था। सहदेव अत्यन्त विनीतभाव से चरणों में पड़कर नरदेव भगवान वासुदेव की शरण में आया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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