महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 83 श्लोक 34-48

त्र्यशीतितम (83) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 34-48 का हिन्दी अनुवाद

जो मन्त्री स्वामी का प्रिय करने की इच्छा से उसके उन सभी बर्तावों को सह लेता है, वही अनुरक्त है। वह राजा के सुख- दुख मानता है। ऐसे ही मनुष्य से राजा को सभी कार्यों मे सलाह पूछनी चाहिये। जो अनुरक्त हो, अन्याय गुणों से सम्पन्न हो और बुद्धिमान हो वह भी यदि सरल स्वभाव का न हो तो राजा की गुप्त सलाह को सुनने का अधिकारी नहीं है। सका शत्रुओं के साथ सम्बन्ध हो तथा अपने राज्य के नागरिकों के प्रति जिसकी अधिक आदर बुद्धि न हो, ऐसे मनुष्य को सुह्नद् नहीं मानना चाहियें। वह भी गुप्त सलाह सुनने का अधिकारी नहीं है। जो मुर्ख, अपवित्र, जड शत्रुसेवी, बढ-बढकर बातें बनाने वाला क्रोधी और लोभी है तथा सुहद नहीं हैं, उसको भी गुप्त मन्त्रणा सुनने का अधिकार नही है। जो कोई अनुरक्त, अनेक शास्त्रों का विद्वान और सबके द्वारा सम्मानित हो तथा जिसको भली-भाँति भेंट दी गयी हों वह यदि नया आया हुआ हो तो गुप्त मन्त्रणा सुनने के योग्य नही है। जिसके पिता को अधर्मा चरण के कारण पहले अपमानपूर्वक निकाल दिया गया हो और उसका पुत्र सम्मान पूर्वक पिता के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया गया हो, तो वह भी गुप्त सलाह सुनने का अधिकारी नहीं है। जो थोड़े-से भी अनुचित कार्य के कारण दण्डित करके निर्धन कर दिया गया हो, वह सुहद् एवं अन्याय गुणों से सम्पन्न होने पर भी गुप्त मन्त्रणा सुनने के योग्य नहीं हैं।

जिसकी बुद्धि तीव्र और धारणा शक्ति प्रबल हो जो अपने ही देश में उत्पन्न, शुद्ध आचरण वाला और विद्वान हो तथा सब तरह के कार्यों मे परिक्षा करने पर निर्दोष सिद्ध हुआ, हो वह गुप्त सलाह सुनने का अधिकार है। जो ज्ञान -विज्ञान से सम्पन्न अपने और शत्रुओं के पक्ष लोगो प्रकृति को परखने वाला तथा राजा का अपने आत्मा के समान अभिन्न सुहद् हो वह गुप्त मन्त्रणा सुनने का अधिकारी हैं। जो सत्यवादी शीलवान गम्भीर लज्जाशील कोमल स्वाभाव वाला तथा बाप-दादों के समय से ही राजा की सेवा करता आया है, वह भी गुप्त मन्त्रणा सुनने का अधिकारी है। जो संतोषी, सत्पुरुषों द्वारा सम्मानित, सत्यपरायण, शूरवीर, पाप से घृणा करने वाला, राजकीय मन्त्रणा को समझने वाला, समय की पहचान रखने वाला तथा शौर्यसम्पन्न है, वह भी गुप्त मन्त्रणा को सुनने की योग्यता रखता है। नरेश्वर! जो राजा चिरकाल तक दण्ड धारण करने की इच्छा रखता हो, उसे अपनी गुप्त सलाह उसी व्यक्ति को बतानी चाहिये, जो शक्तिशाली हो और सारे जगत को समझा-बुझाकर अपने वश में कर सकता हो। नगर और जनपद के लोग जिस पर धर्मतः विश्वास करते हों तथा जो कुशल योद्धा और नीतिशास्त्र का विद्वान हो, वही गुप्त सलाह सुनने का अधिकारी है। इसलिये जो उपर्युक्त सभी गुणों से सम्पन्न, सबके द्वारा सम्मानित, प्रकृति को परखने वाले तथा महान पद की इच्छा रखने वाले हों, ऐसे पुरुषों को ही मन्त्री के पद पर नियुक्त करना चाहिये। राजा के मन्त्रियों की संख्या कम से कम तीन होनी चाहिये। अपनी तथा शत्रु की प्रकृतियों में जो दोष या दुर्बलता हो, उन पर मन्त्रियों को दृष्टि रखनी चाहिये; क्योंकि मन्त्रियों की मन्त्रणा ( उनकी दी हुई नेक सलाह) ही राजा के राष्ट्र की जड़ है। उसी के आधार पर राज्य की उन्नति होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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