एकोननवत्यधिकद्विशततम (289) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: एकोननवत्यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 33-38 का हिन्दी अनुवाद
बाहर निकलने पर शुक्र अपने तेज से प्रज्वलित-से हो रहे थे। उन्हें उस अवस्था में देखकर हाथ में त्रिशूल लेकर खड़े हुए भगवान शिव पुन: रोष से भर गये। उस समय देवी पार्वती ने कुपित हुए अपने पतिदेव भगवान पशुपति को रोका। देवी के द्वारा भगवान शंकर के रोक दिये जाने पर शुक्राचार्य उनके पुत्र भाव को प्राप्त हुए। देवी पार्वती ने कहा- प्रभो! अब यह शुक्र मेरा पुत्र हो गया; अत: आपको इसका विनाश नहीं करना चाहिये। देव! जो आपके उदर से निकला हो, ऐसा कोई भी पुरुष विनाश को नहीं प्राप्त हो सकता। राजन! यह सुनकर महादेव जी पार्वती पर बहुत प्रसन्न हुए और हँसते हुए बारंबार कहने लगे- 'अब यह जहाँ चाहे जा सकता है'। तदनन्तर बुद्धिमान महामुनि शुक्राचार्य ने वरदायक देवता महादेव जी तथा उमा देवी को प्रणाम करके अभीष्ट गति प्राप्त कर ली। भरतश्रेष्ठ! तात युधिष्ठिर! तुमने जैसा मुझसे पूछा था, उसके अनुसार मैंने यह महात्मा भृगुपुत्र शुक्राचार्य का चरित्र तुमसे कह सुनाया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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