चतुरशीत्यधिकद्विशततम (284) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: चतुरशीत्यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 150-166 का हिन्दी अनुवाद
देवाधिदेव! जगन्नाथ! आप अमृत पान करने वाले और गणों के स्वामी हैं। विषाग्नि तथा मृत्यु से रक्षा करने वाले और दूध एवं सोमरस का पान करने वाले हैं। आप सुख से भ्रष्ट हुए जीवों के प्रधान रक्षक तथा तुषितनामक देवताओं के आदिभूत ब्रह्मा जी का भी पालन करने वाले हैं। आप ही हिरण्यरेता (अग्नि), पुरुष (अन्तर्यामी) तथा आप ही स्त्री, पुरुष और नपुंसक हैं। बालक-युवा और वृद्ध भी आप ही हैं। नागेश्वर! आप जीर्ण दाढ़ों वाले और इन्द्र हैं। आप विश्वकृत (जगत के संहारक), विश्वकर्ता (प्रजापति), विश्वकृत (ब्रह्मा जी), विश्व की रचना करने वाले प्रजापतियों में श्रेष्ठ, विश्व का भार वहन करने वाले, विश्वरूप, तेजस्वी और सब ओर मुख वाले हैं। चन्द्रमा और सूर्य आपके नेत्र तथा पितामह ब्रह्मा आपके हृदय हैं। आप ही समुद्र हैं, सरस्वती आपकी वाणी है, अग्नि और वायु बल हैं तथा आपके नेत्रों का खुलना और बंद होना ही दिन और रात्रि हैं। शिव! आपके महात्म्य को ठीक-ठीक जानने में ब्रह्माण, विष्णु तथा प्राचीन ऋषि भी समर्थ नहीं हैं। आपके जो सूक्ष्म रूप हैं वे हम लोगों की दृष्टि में नहीं आते। भगवन! जैसे पिता अपने औरस पुत्र की रक्षा करता है, उसी तरह आप सर्वदा मेरी रक्षा करें। अनघ! मैं आपके द्वारा रक्षित होने योग्य हूँ, आप अवश्य मेरी रक्षा करें, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप भक्तों पर दया करने वाले भगवान हैं और मैं सदा के लिये आपका भक्त हूँ। जो हजारों मनुष्यों पर माया का परदा डालकर सबके लिये दुर्बोध हो रहे हैं, अद्वितीय हैं तथा समुद्र के समान कामनाओं का अन्त होने पर प्रकाश में आते हैं, वे परमेश्वर नित्य मेरी रक्षा करें। जो निद्रा के वशीभूत न होकर प्राणों पर विजय पा चुके हैं और इन्द्रियों को जीतकर सत्त्वगुण में स्थित हैं, ऐसे योगीलोग ध्यान में जिस ज्योतिर्मय तत्त्व का साक्षात्कार करते हैं, उस योगात्मा परमेश्वर को नमस्कार है। जो सदा जटा और दण्ड धारण किये रहते हैं, जिनका उदर और शरीर विशाल है तथा कमण्डलु ही जिनके लिये तरकस का काम देता है, ऐस ब्रह्मा जी के रूप में विराजमान भगवान शिव को प्रणाम है। जिनके केशों में बादल, शरीर की संधियों में नदियाँ और उदर में चारों ओर समुद्र हैं, उन जलस्वरूप परमात्मा को नमस्कार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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