महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 217 श्लोक 30-38

सप्‍तदशाधिकद्विशततम (217) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍तदशाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 30-38 का हिन्दी अनुवाद

वेद के ज्ञाता विद्वान पुरुषों ने इस प्रकार एकमात्र ब्रह्म की प्राप्ति कराने वाले साधनरूप धर्म का वर्णन किया है। अपने-अपने ज्ञात के अनुसार उपासना करने वाले सभी साधक परमगति को प्राप्त होते हैं। जिन्‍हें राग आदि दोषों से रहित अस्‍थायी ज्ञान प्राप्त होता है, वे भी उत्‍तम लोकों को प्राप्त होते हैं। तदनन्‍तर साधन-बल से पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके वे मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। जो सम्‍पूर्ण ऐश्‍वर्यों से युक्‍त, अजन्‍मा, दिव्‍य एवं अव्‍यक्‍त नाम वाले भगवान विष्‍णु की भक्तिभाव से शरण लेते हैं, वे ज्ञानानन्‍द से तृप्त, विशुद्ध और कामनारहित हो जाते हैं। वे अपने अन्‍त:करण में श्रीहरि को स्थित जानकर अव्‍यय-स्‍वरूप हो जाते हैं। उन्‍हें फिर संसार में नही आना पड़ता। वे उस अविनाशी और अविकारी परम पद को पाकर परमानन्‍द में निमग्‍न हो जाते हैं। इतना ही यह विज्ञान है यह जगत है भी और नहीं भी है (अर्थात व्‍यावहारिक अवस्‍था में यह जगत है और पारमार्थिक अवस्‍था में नहीं है) सम्‍पूर्ण जगत तृष्‍णा में बाँधकर चक्र के समान घूम रहा है। जैसे कमल की नाल में रहने वाला तन्‍तु उसके सभी अंशों में फैला रहता है, उसी प्रकार अनादि एवं अनन्‍त तृष्‍णा तन्‍तु सदा देहधारी के चित्‍त में स्थित रहता है। जैसे कपड़ा बुनने वाला बुनकर सूई से वस्त्र में सूत को पिरो देता है, उसी प्रकार तृष्‍णारूपी सूई से संसाररूपी सूत्र ग्रथित होता है। जो प्रकृति को, उसके कार्य को, पुरुष (जीवात्‍मा) को और सनातन परमात्‍मा को यथार्थ रूप से जानता है, वह तृष्‍णा से रहित होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। संसार को शरण देनेवाले ऋषि श्रेष्ठ भगवान नारायण ने जीवों पर दया करने के लिये ही इस अमृतमय ज्ञान को प्रकाशित किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्वमें श्रीकृष्‍ण सम्‍बन्‍धी अध्‍यात्‍म का वर्णनविषयक दो सौ सत्रहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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