पंचदश (15) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: पंचदश अध्याय: श्लोक 35-51 का हिन्दी अनुवाद
यदि दण्ड रक्षा के लिये सदा उद्यत न रहे तो कुत्ता हविष्य को देखते ही चाट जाये और यदि दण्ड रक्षा न करे तो कौआ पुरोडाश को उठा ले जाय। यह राज्य धर्म से प्राप्त हुआ हो या अधर्म से, इसके लिये शोक नहीं करना चाहिये। आप भोग भोगिये और यज्ञ कीजिये। शुद्ध वस्त्र धारण करने वाले धनवान् पुरुष सुखपूर्वक धर्म का आचरण करते हैं और उत्तम अन्न भोजन करते हुए फलों और दानों की वर्षा करते हैं। इसमें संदेह नहीं कि सारे कार्य धन के अधीन हैं, परंतु धन दण्ड के अधीन है। देखिये दण्ड की कैसी महिमा है? लोकयात्रा का निर्वाह करने के लिये ही धर्म का प्रतिपादन किया गया है। सर्वथा हिंसा न की जाय अथवा दुष्ट की हिंसा की जाय, यह प्रश्न उपस्थित होने पर जिसमें धर्म की रक्षा हो, वही कार्य श्रेष्ठ मानना चाहिये। कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिससे सर्वथा गुण-ही-गुण हो। ऐसी भी वस्तु नहीं है जो सर्वथा गुणों से वंचित ही हो। सभी कार्यों में अच्छाई और बुराई दोनों ही देखने में आती है। बहुत से मनुष्य पशुओं (बैलों) का अण्डकोश काटकर फिर उसके मस्तक पर उगे हुए दोनों सींगों को भी विदीर्ण कर देते हैं, जिससे वे अधिक बढ़ने न पावें। फिर उनसे भार ढुलाते हैं, उन्हें घर में बाँधे रखते हैं और नये बच्छे को गाड़ी आदि में जोतकर उसका दमन करते हैं- उनकी उद्दण्डता दूर करके उनसे काम करने का अभ्यास कराते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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