महाभारत विराट पर्व अध्याय 71 श्लोक 13-23

एकसप्ततितम (71) अध्याय: विराट पर्व (वैवाहिक पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: एकसप्ततितम अध्याय: श्लोक 13-23 का हिन्दी अनुवाद


उत्तर बोले- पिता जी! विशुद्ध जाम्बूनद नामक सुवर्ण के समान जिनका गौर शरीर है, जो सबसे बड़े और सिंह के समान हृष्ट पुष्ट हैं, जिनकी नाक लंबी और बड़े बड़े नेत्र कुछ लालिमा लिये कानो तक फैले हुए हैं, ये ही कुरुकुल नरेश महाराज युधिष्ठिर हैं। और ये जो मतवाले गजराज की भाँति मसतानी चाल से चलने वाले हैं, तपाये हुए संवर्ण के समान जिनका विशुद्ध गौर शरीर है, जिनके कंधे मोटे और चैड़े हैं तथा भुजाएँ बड़ी बड़ी और भारी हैं, ये ही भीमसेन हैं। इन्हें अचछी तरह देखिये। इनके बगल में जो ये महान धनुर्धर श्याम वर्ण के तरुण वीर विराज रहे हैं, जो यूथपति गजराज के समान शोभा पाते हैं, जिनके कंधे सिंह के समान ऊँचे और चाल मतवाले हाथी के समान मस्तानी है, ये ही कमल दल के समान विशाल नेत्रों वाले वीरवर अर्जुन हैं।

महाराज युधिष्ठिर के समीप बैठे हुए वे इन्द्र और उपेन्द्र के सूान दोनों नरश्रेष्ठ माद्री के जुड़वें पुत्र नकुल-सहदेव हैं। सम्पूर्ण मानव-जगत में इनके रूप, बल और शील की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। इन दोनों के बगल में जो तेजस्विनी देवी मूर्तिमती गौरी के समान खड़ी हैं, जिनकी कान्ति नीलकमल की आभा को लज्जित कर रही है तथा जो देवताओं की भी देवी और साकार रूप में प्रकट हुई लक्ष्मी शोभा पा रही हैं, ये ही द्रुपद कुमारी महारानी कृष्णा हैं।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! इस प्रकार उन पाँचों कुन्ती पुत्र पाण्डवों का राजा को परिचय देकर विराट कुमार ने अर्जुन का पराक्रम बताना प्रारम्भ किया।

उत्तर ने कहा- पिता जी! ये ही वे देवपुत्र हैं, जो शत्रुओं का उसी प्रकार वध करते हैं, जैसे सिंह मृगों का। ये ही कौरव रथा राहियों की सेना में उन सब श्रेष्ठ महारथियों को घायल करते हुए निर्भय विचर रहे थे। युद्ध में इनके एक ही बाण से घायल होकर विकर्ण का विशाल गजराज, जो सोने की साँकल से सुशोभित था, धरती पर दोनों दाँत टेककर मर गया। इन्होंने ही गौअें की जीता और युद्ध में कौरवों को परास्त किया। इनके शंख की गम्भीर ध्वनि सुनकर मेरे तो कान बहरे हो गये थे।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! उत्तर की यह बात सुनकर प्रतापी मत्स्य नरेश, जो युधिष्ठिर के अपराधी थे, अपने पुत्र से इस प्रकार बोले- ‘बेटा! यह पाण्डवों को प्रसन्न करने का समय आया है। मेरी ऐसी ही रुचि है। यदि तुम्हारी राय हो, तो मैं कुमारी उत्तरा का विवाह कुन्ती के पुत्र अर्जुन से कर दूँ’।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः