महाभारत विराट पर्व अध्याय 58 श्लोक 27-41

अष्टपंचाशत्तम (58) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: अष्टपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 27-41 का हिन्दी अनुवाद


दोनों महाबाहु वीर क्रोध में भरकर निकट आ गये और बाण समूहों से एक दूसरे का आचछादित करने लगे। उनमें से कोई भी पराजित होने वाला नहीं था। भरद्वाज नन्दन द्रोण अत्यन्त कुपित हो, जिसके पृष्ठ भाग में सुवर्ण जड़ा हुआ था और जिसे उठाना दूसरों के लिये बहुत कठिन था, उस मान् धनुष को खींचकर अर्जुन को बाणों से बींधने लगे। उन्होंने अर्जुन के रथ पर बाणों का जाल सा बिछा दिया। इतना ही नहीं, शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए उन तेजस्वी बाणों द्वारा उन्होंने सूर्य की प्रभा को भी आच्छादित कर दिया। जैसे मेघ पर्वत पर जल की वर्षा करता है, उसी प्रकार महाबाहु महारथी द्रोण पृथापुत्र अर्जुन को अत्यन्त वेगशाली तीखे बाणों द्वारा बींध रहे थे।

इसी प्रकार हर्ष में भरे हुए वेगशाली पाण्डुनन्दन अर्जुन भी भार सहन करने में समर्थ और शत्रुओं का नाश करने वाला उत्तम एवं दिव्य गाण्डीव धनुष लेकर बहुत से स्वर्ण भूषित विचित्र बाणों की वर्षा कर रहे थे। पराक्रमी पार्थ अपने धनुष से छूअे हुए बाण समूहों द्वारा तुरंत ही आचार्य द्रोण की बाण वर्षा को नष्ट करते जाते थे। यह एक अद्र्भुत सी बात थी। रथ से विचरने वाले कुन्ती पुत्र धनुजय सबके लिये दर्शनीय हो रहे थे। उन्होंने सब दिशाओं में एक ही साथ अस्त्रों की वर्षा दिखायी और आकाश को चारों और से बाणों द्वारा ढँककर एकमात्र अन्धकार में निमग्न कर दिया। उस समय आचार्य द्रोण कुहरे से ढके हुए की भाँति अदृश्य हो गये।। उत्तम बाणों से ढके हुए द्रोणाचार्य का स्वरूप उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो सब ओर से जलता हुआ कोई पर्वत हो। आचार्य द्रोण संग्राम भूमि में बड़ी शोभा पाने वाले थे।

संग्राम में तब मेघ गर्जना के समान गम्भीर नाद करने वाले अग्नि चक्र के सदृश भयंकर परम उत्तम आयुधश्रेष्ठ धनुष की टंकार फैलाते हुए उसे ( कानों तक ) खींचा और अपने यार समूहों से अर्जुन के उन सब बाणों को काट डाला। उस समय जलते हुए बाँसों के चटखने का सा बड़ा भयंकर शब्द हो रहा था। जिनकी मन बुद्धि अमेय है, उन द्रोण ने अपने विचित्र धनुष से छूटे हुए सुवर्णमय पंखों वाले बाणों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं तथा सूर्य के प्रकाया को भी ढक दिया। उस समय सोने की पाँख और झुकी हुई गाँठ वाले आकाशचारी बाणों के बहुत से समुदाय आकाश में दृष्टिगोचर हो रहे थे। वे सभी पक्षधारी बाण समुदाय आचार्य द्रोण के धनुष से प्रकट हुए थे। आकाश में उन बाणों का समूह परसपर सटकर एक ही विशाल बाण के समान दिखायी देता था।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः