महाभारत विराट पर्व अध्याय 58 श्लोक 42-55

अष्टपंचाशत्तम (58) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: अष्टपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 42-55 का हिन्दी अनुवाद


इस प्रकार वे दोनों वीर सुवर्ण भूषित महाबाणों की वर्षा करते हुए आकाश को मानो उल्काओं से आच्छादित करने लगे। कंक और मोर की पाँख वाले उन दोनों के बाण शरद्ऋतु में आकाश में विचरने वाले हंसों की पाँत के समान सुशोभित होते थे।। महामना द्रोण और पाण्डु नन्दन अर्जुन काउ वह रोष पूर्ण युद्ध वृत्रासुर और इन्द्र के समान भयंकर प्रतीत होता था। जैसे दो हाथी एक दूसरे से भिड़कर दाँतों के अग्र भाग से प्रहार करते हों, उसी प्रकार वे दोनों धनुष को अच्छी तरह खींचकर छोड़े हुए बाणों द्वारा एक दूसरे को घायल कर रहे थे। क्रोध में भरे हुए उन दोनों वीरो की रण भूमि में बड़ी शोभा हो रही थी। वे उस संग्राम में पृथक् पृथक् दिव्यास्त्र प्रकर करते हुए धर्म युद्ध कर रहे थे। तदनन्तर विजयी वीरों में श्रेष्ठ अर्जुन ने आचार्य प्रवर द्रोण के द्वारा चलाये हुए शान पर तेज किये हुए बाणों को अपने तीखे सायकों से नष्ट कर दिया। वे भयानक पराक्रमी थे, उन्होंने दर्शकों को अपना अस्त्र कौशल दिखाते हुए तुरंत बहुसंख्यक बाणों द्वारा आकाश को ढँक दिया।

यद्यपि प्रचण्ड तेजस्वी नरश्रेष्ठ अर्जुन विपक्षी को मार डालने की इच्छा रखते थे, तो भी शस्त्र धारियों में श्रेष्ठ आचार्य प्रवर द्रोण उस समर भूमि में झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा प्रहार करके अर्जुन के साथ मानो खेल कर रहे थे ( उनमें अर्जुन के प्रति वात्सल्य का भाव उमड़ रहा था )। उस तुमुल यंद्ध में अर्जुन दिव्यास्त्रों की वर्षा कर रहे थे, किंतु आचार्य अपने अस्त्रों द्वारा उनके अस्त्रों का निवारण मात्र करके उन्हें लड़ा रहे थे। वे दोनों नरश्रेष्ठ जब क्रोण और अमर्ष में भर गये, तब उनमें परस्पर देवताओं औश्र दानवों की भाँति घमासान युद्ध छिड़ गया। पाण्डु नन्दन अर्जुन आचार्य द्रोण के छोड़े हुए ऐन्द्र, वायव्य और आग्नेय आदि अस्त्रों को उसके विरोधी अस्त्र द्वारा बार बार नष्ट कर देते थे। इस प्रकार वे दोनों महान् धनुर्धर शूरवीर तीखे बाण छोड़ते हुए अपनी बाण वर्षा द्वारा आकाश को एकमात्र अन्धकार में निमग्न करने लगे। अर्जुन के छोड़े हुए बाण जब देहधारियों पर पड़ते थे, तब पर्वतों पर गिरने वाले वज्र के समान भयंकर शब्द सुनायी देता था। जनमेजय! उस समय हाथी सवार, रथी और घुड़सवार लोहूलुहान होकर फूले हुए पलाश वृक्ष के समान दिखायी दकते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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