महाभारत विराट पर्व अध्याय 55 श्लोक 36-49

पंचपंचाशत्तम (55) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 36-49 का हिन्दी अनुवाद


उनहोंने द्रोणाचार्य को तिहत्तर, दुःसह को दस, अश्वत्थामा को आठ, दुःशासन को बारह, शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य को तीन, शान्तनु नन्दन भीष्म को साठ तथा राजा दुर्योधन को सौ सुरप्र नाम वाले बाणों से घायल किया। तत्पश्चात् शत्रु वीरों का हनन करने वाले अर्जुन ने कर्ण के कान में एक कर्णी नामक बाण मारकर उसे बींध डाला। फिर उसके घोड़े और सारथि को भी यमलोक भेजकर रथहीन कर दिया। इस प्रकार सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता महा धनुर्धर सुप्रसिद्ध कर्ण के घायल होने तथा उसके घोड़े, सारथि एवं रथ के नष्ट हो जाने पर सारी सेना में भगदड़ मच गयी। ।विराट कुमार उत्तर ने कौरव सेना को भागती और कुनती पुत्र अर्जुन को पुनः युद्ध के लिये डटा हुआ देखकर उनका अभिप्राय समझकर यों कहा - ‘जिष्णो! मुझ सारथि के साथ इस सुन्दर रथ पर बैइे हुए आप अब किस सेना की ओर जाना चाहते हैं ? आप जहाँ के लिये आज्ञा दें, वहीं आपके साथ चलूँ।

अर्जुन बोले - उत्तर! जिनके लाल लाल घोड़े हैं, जिन शुभ स्वरूप महापुरुष को तुम बाघम्बर पहने देख रहे हो, जो अपने रथ पर नीले रंग की पताका फहराकर बैठे हुए हैं, वे कृपाचार्य जी हैं और यह उनकी श्रेष्ठ सेना है। मुझे इसी सेना के पास ले चलो। मैं इन दृढ़ धनुष वाले कृपाचार्यजी को शीघ्र अस्त्र चलाने की कला दिखलाऊँगा। जिनकी ध्वजा में सुन्दर सुवर्णमय कमण्डलु सुशोभित है, ये सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ आचार्य द्रोण हैं। ये मेरे तथा अन्य सब शस्त्रधारियों के माननीय हैं। तुम इन परम प्रसन्न महावीर आचार्यपाद की रथ द्वारा प्रदक्षिणा करो। तुम इसी समय इन्हें आदर दो और युद्ध के लिये उद्यत हो रथ पर बैठे रहो। यह सनातन धर्म है। यदि आचार्य द्रोण पहले मेरे शरीर पर प्रहार करेंगे, तब मैं इनके ऊपर भी

बाणों द्वारा आघात करूँगा। ऐसा करने पर इन्हें क्रोध नहीं होगा। इनके पास ही जिनकी ध्वजा के अग्रभाग में धनुष का चिह्न दिखायी देता है, ये आचार्य के ही योग्य पुत्र महारथी अश्वत्थामा हैं। ये भी मेरे तथा सम्पूर्ण शस्त्र धारियों के लिये माननीय हैं, अतः इनके रथ के समीप जाकर भी तुम बार बार लौट आना। यह जो रथियों की सेना में सोने के कवच धारण किये तीसरी कान देने योग्य ( बिना थकी-मांदी ) सेना के साथ विराजमान हैं, जिसकी ध्वजा के अग्र भाग में नाग का चिह्न है औश्र सोने की पताका फहरा रही है, यह धृतराष्ट्र पुत्र श्रीमान् राजा दुर्योधन हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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