पंचपंचाशत्तम (55) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 50-60 का हिन्दी अनुवाद
जो नीले रंग की पाँच के चिह्न से सुशोभित पताका वाले रथ पर बैठे हुए हैं, जिनका धनुष विशाल है, जिन्होंने हाथों में दस्ताने पहन रक्खे हैं, जिनका वह तारों और सूर्य के चिह्नों से विचित्र शोभा धारण करने वाला ध्वज फहरा रहा है, जिनके मस्तक पर श्वेत रंग का उज्ज्वल छत्र सुशोभित है, जो नाना प्रकार की ध्वजा पताकाओं से उपलक्षित रथियों की विशाल सेना के अग्रभाग में बादलों के आगे सूर्य की भाँति प्रकाशित हो रहे हैं, जिनके शरीर पर चन्द्रमा और सूर्य के समान चमकीला सोने का कवच और सुवर्णमय शिस्त्राण दिखायी देता है, वे रेष्ठ रथ पर विराजमान महापराक्रमी वीर पुरुष हम सबके पितामह शान्तनु नन्दन भीष्म हैं। ये राज्य लक्ष्मी से सम्पन्न होकर भी दुर्योधन के अधीन हो रहे हैं। इसलिये मेरे मन को संतप्त सा किये देते हैं। इनके पास सबसे पीछे चलना। ये मेरे मार्ग में विघ्नकारक नहीं होंगे। इनके साथ युद्ध करते समय सावधान होकर मेरे घोड़ों को सँभालना। राजन्! अर्जुन की यह बात सुनकर विराट पुत्र उत्तर निर्भय एवं सावणान हो सव्यसाची धनंजय को उस स्थान पर ले गया, जहाँ कृपाचार्य उनसे युद्ध करने के लिये खड़े थे। इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में अर्जुन-कृप-संग्राम विषयक पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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