पंचपंचाशत्तम (55) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 24-35 का हिन्दी अनुवाद
अर्जुन के बाणों से घायल हुए शत्रु ऐसा समझते थे कि निश्चय ही अर्जुन की विजय की अभिलाषा रखने के कारण साक्षात् इन्द्र सम्पूर्ण देवताओं के साथ आकर हमें मार रहे हैं। उस समर भूमि में असंख्य शत्रुओं काउ संहार करते हुए पार्थ की ओर देखकर लोग यह मानने लगे कि अर्जुन के रूप में साक्षात् काल ही आकर सबका संहार कर रहा है। कौरव योद्धाओं के शरीर कुन्ती नन्दन अर्जुन के बाणों से घायल होकर छिन्न - भिन्न हो गये थे। वे पार्थ के बाणों से मारे हुए की ही भाँति पड़े थे; क्योंकि पार्थ के इस अद्भुत पराक्रम की उन्हीं से उपमा दी जा सकती थी। वे धान की बाल के समान शत्रुओं से सिर क्रमशः काटते जाते थे। अर्जुन के भय से कौरवों की सारी शक्ति नष्ट हो गयी थी। अर्जुन के शत्रु रूपी वन अर्जुन रूपी वायु से ही छिन्न - भिन्न हो लाल धाराएँ ( रक्त )बहाकर पृथ्वी को भी लाल करने लगे। वायु द्वारा उड़ायी हुई रक्त से सनी धूल के संसर्ग से आकाश में सूर्य की किरणें भी अधिक लाल हो गयीं। जैसे संध्याकाल में पश्चिम का आकाश लाल हो जाता है, उसी प्रकार उस समय सूर्य सहित आकाश लाल रंग का हो गया था। संध्याकाल में तो सूर्य असताचल पर पहुँचकर पर-संताप-कर्म से निवृत्त हो जाते हैं; परंतु पाण्डु नन्दन अर्जुन शत्रु पीड़न रूपी कर्म से निवृत्त नहीं हुइ। अचिन्त्य मन-बुद्धि वाले शूरवीर अर्जुन ने रण भूमि में पुरुषार्थ दिखाने के लियसे डअे हुए उन सभी धनुषधारियों पर अपने दिव्यास्त्रों द्वारा आक्रमण किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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