महाभारत विराट पर्व अध्याय 55 श्लोक 12-23

पंचपंचाशत्तम (55) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 12-23 का हिन्दी अनुवाद


गजराजों के कान? कक्ष, दाँत, निचले ओठ तथा अन्य मर्म स्थानों में बाण मारकर उन्हें धराशायी करने लगे। एक ही क्षण में प्राण हीन हुए कौरव सेना के आगे चलने वाले गजराजों की लाशों से वहाँ की भूमि पट गयी एवं मेघों की घटा से आचछादित आकाश की भाँति प्रतीत होने लगी। महाराज! जैसे प्रलयकाल में लपलपाती लपटों के साथ आगे बढ़ने वाली संवर्तकाग्नि सम्पूर्ण चराचर जगत् को भस्म कर डालती है, उसी प्रकार कुन्ती नन्दन अर्जुन उस समर भूमि में शत्रुओं को अपनी बाणाग्नि से दग्ध करने लगे। तदनन्तर शत्रुओं का मान मर्दन करने वाले बलवान् अर्जुन ने अपने सम्पूर्ण अस्त्र शस्त्रों के तेज से, धनुष की टंकार से, ध्वजा में निवास करने वाले मानवेतर भूतों के भयंकर कोलाहल से, अत्यन्त भैरव गर्जना करने वाले वानर से तथा भीषण नाद फैलाने वाले शंख से भी दुर्योधन की उस सेना में भारी भय उत्पन्न कर दिया। शत्रुओं की रथ शक्ति को तो अर्जुन पहले ही धरती पर सुला चुके थे। फिर असमर्थों का वध करना अनुचित साहस मानकर वे एक बार वहाँ से हट गये, परंतु ( उप सैनिकों को युद्ध के लिये उद्यत देख ) फिर उनके पास आ गये।

अर्जुन के धनुष से छूटे हुए अत्यन्त तीखी धार वाले बाण समूह मानो रक्त पीने वाले आकाश चारी पक्षी थेद्व उनके द्वारा उन्होंने सम्पूर्ण आकाश को ढँक दिया। राजन्! जैसे प्रचण्ड तेज वाले सूर्य देव की किरणें एक पात्र में नहीं अँट सकती, उसी प्रकार उस समय सम्पूर्ण दिशाओं में फैले हुए अर्जुन के असंख्य बाण आकाश में समा नीं पाते थे। शत्रु सैनिक अर्जुन का रथ निकट आने पर उसे एक ही बार पहचान पाते थे; दुबारा इसके लिये उन्हें अवसर नहीं मिलता था; क्योंकि पास आते ही अर्जुन उन्हें घोड़ों सहित इस लोक से परलोक भेज देते थे। अर्जुन के वे बाण जिस प्रकार शत्रुओं के शरीर में अटकते नहीं थे, उन्हें छेदकर पार निकल जाते थे, उसी प्रकार उनका रथ भी उस समय शत्रु सेनाओं में रुकता नहीं था; उसको चीरता हुआ आगे बढ़ जाता था। जैसे अनन्त फणों वाले नागराज शेष महासागर में क्रीड़ा करते हुए उसे मथ डालते हैं, उसी प्रकार अर्जुन ने अनायास ही शत्रु सेना में घूम घूमकर भारी हलचल पैदा कर दी। जब अर्जुन बाण चलाते थे, उस समय समस्त प्राणी सदा उनके गाण्डीव धनुष की बड़े जोर से होने वाली अद्भुत टंकार सुनते थे। वैसी टंकार ध्वनि पहले किसी ने कभी नहीं सुनी थी। उसके सामने दूसरे सभी प्रकार के याब्द दब जाते थे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः