महाभारत वन पर्व अध्याय 107 श्लोक 63-70

सप्ताधिकशततम (107) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 63-70 का हिन्दी अनुवाद


कमल के समान नेत्रों वाले सगर ने वरुणालय समुद्र को अपना पुत्र माना और दीर्घ काल तक राज्य शासन करके अन्त में अपने पौत्र अंशुमान पर राज्य का सारा भार रखकर वे स्वर्गलोक को चले गये।

महाराज! धर्मात्मा अंशुमान भी अपने पितामाह सगर के समान ही समुद्र से घि‍री हुई इस वसुधा का पालन करते रहे। उनके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम दिलीप था। वह भी धर्म का ज्ञाता था। दिलीप को राज्य देकर अंशुमान भी परलोकवासी हुए।

दिलीप ने जब अपने पितरों के महान संहार का समाचार सुना, तब वे दु:ख से संतप्त हो उठे और उनकी सद्गति का उपाय सोचने लगे। राजा दिलीप ने गंगाजी को इस भूतल पर उतारने के लिये महान प्रयत्न किया। यथाशक्ति चेष्‍टा करने पर भी वे गंगा को पृथ्वी पर उतार न सके।

दिलीप के भगीरथ नाम से विख्यात एक पुत्र हुआ, जो परम कान्तिमान, धर्मपरायण, सत्यवादी और अदोषदर्शी था। सत्यधर्मपरायण महात्मा भगीरथ का राज्याभिषेक करके दिलीप वन में चले गये।

भरतश्रेष्‍ठ! राजा दिलीप तपस्याजनक सिद्धि से संयुक्त हो अन्त काल आने पर वन से स्वर्गलोक को चले गये।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अंतर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में अगस्त्य माहात्म्य वर्णन विषयक एक सौ सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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