महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 83 श्लोक 40-57

त्र्यशीतितम (83) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 40-57 का हिन्दी अनुवाद


अपनी शक्ति को कटी हुई देखकर हिडिम्बाकुमार घटोत्कच भगदत्त के भय से उसी प्रकार भाग गया, जैसे पूर्वकाल में देवराज इन्द्र के साथ युद्ध करते समय दैत्यराज नमुचि रणभूमि से भागा था। राजन! घटोत्कच अपने पौरूष के लिये विख्‍यात, पराक्रमी, शूरवीर था। वरुण और यमराज भी उस वीर को समरभूमि में परास्त नहीं कर सकते थे। उसी को वहाँ रणक्षेत्र-में जीतकर भगदत्त का वह हाथी समरांगण में पाण्डव सेना का उसी प्रकार मर्दन करने लगा, जैसे वनैला हाथी सरोवर में कमलिनी को रौंदता हुआ विचरता है।

दूसरी ओर मद्रराज शल्य युद्ध में अपने भानजे नकुल और सहदेव से उलझे हुए थे। उन्होंने पाण्‍डुकुल को आनन्दित करने वाले भानजों को अपने बाण समूहों से आच्छादित कर दिया। सहदेव ने समरभूमि में अपने मामा को युद्ध में आसक्त देखकर जैसे बादल सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार उन्हें अपने बाण समूहों से आच्छादित करके आगे बढ़ने से रोक दिया। उनके बाण समूहों से आच्छादित होकर भी शल्य अत्यन्त प्रसन्न ही हुए। माता के नाते नकुल और सहदेव के मन में भी उनके प्रति प्रेम का भाव था। आर्य! तब महारथी शल्य ने समरभूमि में हंसकर एक बाण से नकुल के ध्‍वज को और दूसरे से उनके धनुष को भी काट दिया। भारत! धनुष कट जाने पर उन्‍हें बाणों से आच्‍छादित-से करते हुए युद्धस्‍थल में उनके सारथियों को भी मार गिराया।

राजन! फिर उन्‍होंने उस युद्ध में चार उत्तम सायकों द्वारा नकुल के चारों घोड़ों को यमराज के घर भेज दिया। घोड़ों के मारे जाने पर महार‍थी नकुल उस रथ से तुरंत ही कूदकर अपने यशस्‍वी भाई सहदेव के ही रथ पर जा बैठे। तदनंतर एक ही रथ पर बैठे हुए उन दोनों शूरवीरों ने क्षणभर में अपने सुदृढ़ धनुष को खींचकर रणभूमि में मद्रराज के रथ को तुरंत ही आच्‍छादित कर दिया। अपने भानजों के चलाये हुए झुकी हुई गांठ वाले बहु-संख्‍यक बाणों से आच्‍छादित होने पर भी नरश्रेष्‍ठ शल्‍य पर्वत की भाँति अडिगभाव से खड़े रहे; कम्पित या विचलित नहीं हुए। उन्‍होंने हंसते हुए-से उस शस्त्रवर्षा को भी नष्‍ट कर दिया। भारत! तब पराक्रमी सहदेव ने कुपित होकर एक बाण हाथ में लिया और उसे मद्रराज को लक्षण करके चला दिया। उनके द्वारा चलाया हुआ वह बाण गरुड़ और वायु के समान वेगशाली था। वह मद्रराज को विदीर्ण करके पृथ्‍वी पर जा गिरा।

महाराज! उसके गहरे आघात से पीड़ित एवं व्यथित होकर महारथी शल्य रथ के पिछले भाग में जा बैठे और मूर्च्छित हो गये। युद्धस्थल में नकुल और सहदेव द्वारा पीड़ित होकर उन्हें अचेत हो रथ पर गिरा हुआ देख सारथि रथ द्वारा रणभूमि से बाहर हटा ले गया। मद्रराज के रथ को युद्ध से विमुख हुआ देख आपके सभी पुत्र मन-ही-मन दुखी हो सोचने लगे- शायद अब मद्रराज का जीवन शेष नहीं है। म‍हारथी माद्रीपुत्र युद्ध में अपने मामा को परास्त करके प्रसन्नतापूर्वक शंख बजाने और सिंहनाद करने लगे। प्रजानाथ! जैसे इन्द्रदेव और उपेन्द्रदेव दैत्यों की सेना को मार भगाते हैं, उसी प्रकार नकुल-सहदेव हर्ष में भरकर आपकी सेना को खदेड़ने लगे।


इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍मपर्व के अन्तर्गत भीष्‍मपर्व में द्वन्द्वयुद्धविषयक तिरासीवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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