अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 107-121 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर महाबली भीष्म ने धनुष को खींचकर उसके ऊपर एक मृत्यु के समान भयंकर, भारी-से-भारी लक्ष्य को बेधने में समर्थ, उत्तम और दुःसह पंखयुक्त बाण रखा फिर उसे ब्रह्मास्त्र द्वारा अभिमंत्रित करके छोड़ दिया। उस समय देवताओं, गन्धर्वों, पिशाचों, नागों तथा राक्षसों ने भी देखा, वह बाण महान् वज्र के समान प्रज्वलित हो उठा और अमित बलशाली श्वेत के कवच तथा हृदय को भी छेदकर धरती में समा गया। जैसे डूबता हुआ सूर्य अपनी प्रभा को साथ लेकर शीघ्र ही अस्त हो जाता है, उसी प्रकार वह बाण श्वेत के शरीर से उसके प्राण लेकर चला गया। भीष्म के द्वारा मारे गये नरश्रेष्ठ श्वेत युद्धस्थल में हमने देखा। वह टूटकर गिरे हुए पर्वत के समान जान पड़ता था। महाबली पाण्डव तथा उस दल के दूसरे क्षत्रिय श्वेत के लिये शोक में डूब गये। इधर आपके पुत्र समस्त कौरव हर्ष से उल्लसित हो उठे। राजन्! श्वेत को मारा गया देख आपका पुत्र दुःशासन बाजे-गाजे की भयंकर ध्वनि के साथ चारों और नाचने लगा। संग्रामभूमि में शोभा पाने वाले भीष्म जी के द्वारा महाधनुर्धर श्वेत के मारे जाने पर शिखण्डी आदि महाधनुर्धर रथी भय के मारे कांपने लगे। राजन्! तब सेनापति श्वेत के मारे जाने के कारण अर्जुन और श्रीकृष्ण धीरे-धीरे अपनी सेना को युद्धभूमि से पीछे हटा लिया। भारत! फिर आपकी और पाण्डवों की सेना भी उस समय युद्ध से विरक्त हो गयी। उस समय आपके और शत्रु पक्ष के सैनिक भी बारबार गर्जना कर रहे थे। उस द्वैरथ युद्ध में जो भयंकर संहार हुआ था, उसके लिये चिन्ता करते हुए शत्रुसंतापी पाण्डव महारथी उदास मन से शिविर में लौट आये। इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व श्वेतवधविषयक अड़तालिसवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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