महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 108 श्लोक 51-60

अष्टाधिकशततम (108) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: पच्चाधिकशततम अध्याय: श्लोक 51-60 का हिन्दी अनुवाद


उसके उस कथन को सुनकर महारथी सव्यसाची अर्जुन ने यह सोचकर कि यही इसके उत्साह बढ़ाने का अवसर है, शिखण्डी से इस प्रकार कहा- वीर! मैं बाणों द्वारा शत्रुओं को भगाता हुआ सदा तुम्हारा साथ दूँगा। अत: तुम भयंकर पराक्रमी भीष्म पर रोषपूर्वक आक्रमण करो। महाबाहो! युद्ध में महाबली भीष्म तुम्हें पीड़ा नहीं दे सकते, इसलिये आज यत्नपूर्वक इनके ऊपर धावा करो। आर्य! यदि समरभूमि में भीष्म को मारे बिना लौट जाओगे तो मेरे सहित तुम इस लोक में उपहास के पात्र बन जाओगे। वीर! इस महायुद्ध में जैसे भी हम लोग हंसी के पात्र न बने, वैसा प्रयत्न करो। रणक्षेत्र में पितामह भीष्म को अवश्य मार डालो।

महाबली वीर! इस युद्ध में मैं सब रथियों को रोककर सदा तुम्हारी रक्षा करता रहूँगा। तुम पितामह को मारने का कार्य सिद्ध कर लो। मैं द्रोणाचार्य, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, कृपाचार्य, दुर्योधन, चित्रसेन, विकर्ण, सिन्धुराज जयद्रथ, अवन्ती के राजकुमार विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण, शूरवीर भगदत्त, महाबली मगधराज, सोमदत्तपुत्र भूरिश्रवा, राक्षस अलम्बुष तथा त्रिगर्तराज सुशर्मा को रणक्षेत्र में सब महारथियों के साथ उसी प्रकार रोके रखूँगा, जैसे तटभूमि समुद्र को आगे बढ़ने नहीं देती है। युद्ध में एक साथ लगे हुए समस्त महाबली कौरवों को भी मैं युद्धस्थल में आगे बढ़ने से रोक दूँगा। तुम पितामह भीष्म का वध का कार्य सिद्ध करो।


इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में भीष्म और शिखण्डी का समागमविषयक एक सौ आठवाँ अध्याय पूरा हुआ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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