सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 73-91 का हिन्दी अनुवाद
राजन! तुम्हारी सेना में जो यह द्रुपदपुत्र महारथी शिखण्डी है, वह समरभूमि में अमर्षशील, शौर्यसम्पन्न तथा युद्धविजयी है। वह पहले स्त्री था, फिर पुरुषभाव को प्राप्त हुआ है। ये सारी बातें जैसे हुई हैं, वह सब तुम लोग भी जानते हो। शूरवीर अर्जुन समरांगण में कवच धारण करके शिखण्डी को आगे रखकर मुझ पर तीखे बाणों द्वारा आक्रमण करें। शिखण्डी की ध्वजा अमांगलिक चिह्न से युक्त है तथा विशेषतः वह पहले स्त्री रहा है; इसलिये मैं हाथ में बाण लिये रहने पर भी किसी प्रकार उसके ऊपर प्रहार नहीं करना चाहता। भरतश्रेष्ठ! इसी अवसर का लाभ लेकर पाण्डुपुत्र अर्जुन मुझे चारों ओर से शीघ्रतापूर्वक बाणों द्वारा मार डालने का प्रयत्न करें। मैं महाभाग भगवान श्रीकृष्ण अथवा पाण्डुपुत्र धनंजय के सिवा दूसरे किसी को जगत में ऐसा नहीं देखता, जो युद्ध के लिये उद्यत होने पर मुझे मार सके। इसलिये यह अर्जुन श्रेष्ठ धनुष तथा दूसरे अस्त्र-शस्त्र लेकर युद्ध में सावधानी के साथ प्रयत्नशील हो और उपर्युक्त लक्षणों से युक्त किसी पुरुष को अथवा शिखण्डी को मेरे सामने खड़ा करके स्वयं बाणों द्वारा मुझे मार गिरावे। इसी प्रकार तुम्हारी, निश्चित रूप से विजय हो सकती है। उत्तम व्रत का पालन करने वाले कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर! तुम मेरे ऊपर जैसे मैंने बतायी है, वैसी ही नीति का प्रयोग करो। ऐसा करके ही तुम रणक्षेत्र में आये हुए सम्पूर्ण धृतराष्ट्रपुत्रों एवं उनके सैनिकों को मार सकते हो।' संजय कहते हैं- राजन! यह सब जानकर कुन्ती के सभी पुत्र कुरुकुल के वृद्ध पितामह महात्मा भीष्म को प्रणाम करके अपने शिविर की ओर चले गये। गंगानन्दन भीष्म परलोक की दीक्षा ले चुके थे। उन्होंने जब पूर्वोक्त बात बतायी, तब अर्जुन दुःख से संतप्त एवं लज्जित होकर श्रीकृष्ण से इस प्रकार बोले- 'माधव! कुरुकुल के वृद्ध गुरुजन विशुद्ध बुद्धि, मतिमान पितामह भीष्म से मैं रणक्षेत्र में कैसे युद्ध करूँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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