महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 20 श्लोक 42-63

विंश (20) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 42-63 का हिन्दी अनुवाद
  • कुछ बड़े हाथी तोमरों की मार से घायल हो रहे थे, कुछ बाणों की चोट से क्षत-विक्षत हो अत्‍यन्‍त भयभीत हो गये थे और कुछ सम्‍पूर्ण हाथियों के शब्‍द का अनुसरण करते हुए उन्‍हीं की ओर बढ़े जा रहे थे। (42)
  • कुछ हाथी वहाँ हाथियों द्वारा दाँतों से घायल किये जाने पर उत्‍पातकाल के मेघों के समान भयंकर आर्तनाद कर रहे थे। (43)
  • कितने ही हाथी शत्रु पक्ष के श्रेष्‍ठ हाथियों द्वारा घायल हो युद्धभूमि से विमुख कर दिये गये थे। वे पुन: महावतों द्वारा उत्तम अकुंशों से हाँके जाने पर अपनी ही सेना को रौंदते हुए पुन: लौट आये। (44)
  • महावतों ने बाणों और तोमरों से महावतों को भी घायल कर दिया था। अत: वे हाथियों से पृथ्वी पर गिर पड़े और उनके आयुध एवं अंकुश हाथों से छूटकर इधर-उधर जा गिरे। (45)
  • कितने ही गजराज मनुष्‍यों से शून्‍य हो इधर-उधर चीत्‍कार करते हुए फिर रहे थे। वे एक-दूसरे की सेना में घुसकर फटे हुए बादलों के समान छिन्‍न-भिन्‍न हो धरती पर गिर पड़े। (46)
  • कितने ही बड़े-बड़े हाथी अपनी पीठ पर मरकर गिरे हुए आयुधशून्‍य सवारों को ढोते हुए अकेले विचरने वाले गजराजों के समान सम्‍पूर्ण दिशाओं में चक्‍कर लगा रहे थे। (47)
  • उस समय बहुत से हाथी उस युद्धस्‍थल में तोमर, ऋष्टि तथा फरसों की मार खाकर घायल हो आर्तनाद करके धरती पर गिर जाते थे। (48)
  • उनके पर्वताकार शरीरों के गिरने से सब ओर से आहत हुई भूमि सहसा काँपने और आर्तनाद करने लगी। (49)
  • वहाँ मारे जाकर पताकाओं तथा गजारोहियों सहित सब ओर गिरे हुए हाथियों से आच्‍छादित हुई वह भूमि ऐसी शोभा पा रही थी, मानो इधर-उधर बिखरे हुए पर्वत-खण्‍डों से व्‍याप्‍त हो रही हो। (50)
  • उस रणक्ष्‍ोत्र में कितने ही रथियों ने अपने भल्‍लों द्वारा हाथी पर बैठे हुए महावतों की छाती छेदकर उन्‍हें सहसा मार गिराया। उन महावतों के अंकुश और तोमर इधर-उधर बिखर गये थे। (51)
  • कितने ही हाथी नाराचों से घायल हो क्रौंच पक्षी की भाँति चिग्‍घाड़ रहे थे और अपने तथा शत्रुपक्ष के सैनिकों को भी रौंदते हुए दसों दिशाओं में भाग रहे थे। (52)
  • राजन! हाथी, घोड़े तथा रथ योद्धाओं की लाशों से ढकी हुई वहाँ की भूमि पर रक्‍त और मांस की कीच जम गयी थी। (53)
  • कितने ही हाथियों ने अपने दाँतों के अग्रभाग से पहिये वाले तथा बिना पहिये के बड़े-बड़े रथों को रथियों सहित चकनाचूर करके अपनी सूँड़ों से उछालकर फेंक दिया। (54)
  • रथियों से रहित रथ, सवारों से शून्‍य घोड़े और जिनके सवार मार डाले गये हैं ऐसे हाथी भय से व्‍याकुल हो सम्‍पूर्ण दिशाओं में भाग रहे थे। (55)
  • वहाँ पिता ने पुत्र को और पुत्र ने पिता को मार डाला। ऐसा भयंकर युद्ध हो रहा था कि किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं होता था। (56)
  • मनुष्‍यों के पैर रक्‍त की कीच में टखनों तक धँस जाते थे। उस समय वे दहकते हुए दावानल से घिरे हुए बड़े-बड़े वृक्षों के समान जान पड़ते थे। (57)
  • योद्धाओं के वस्‍त्र, कवच, ध्वज और पताकाएँ रक्‍त से सींच उठी थीं। वहाँ सब कुछ रक्‍त से रँगकर लाल-ही-लाल दिखायी देता था। (58)
  • रणभूमि में गिराये हुए घोड़ों, रथों और पैदलों के समुदाय बारंबार आते-जाते रथों के पहियों से कुचलकर टुकड़े-टुकड़े हो जाते थे। (59)
  • वह सेना का समुद्र हाथियों के समूहरूपी महान वेग, मरे हुए मनुष्‍यरूपी सेवार तथा रथसमूहरूपी भयंकर भँवरों के कारण अद्भुत शोभा पा रहा था। (60)
  • विजयरूपी धन की इच्‍छा रखने वाले योद्धारूपी व्‍यापारी वाहनरूपी बड़ी-बड़ी नौकाओं द्वारा उस सैन्‍य-समुद्र में उतर कर डूबते हुए भी प्राणों का मोह नहीं करते थे। (61)
  • वहाँ समस्‍त योद्धाओं पर बाणों की वर्षा हो रही थी। कहीं उनके चिह्न लुप्त नहीं थे। उनमें से कोई योद्धा अपनी ध्वज आदि चिह्नों के नष्‍ट हो जाने पर भी मोह को नहीं प्राप्‍त हुआ। (62)
  • इस प्रकार जब अत्‍यन्‍त भयंकर घोर युद्ध चल रहा था, उस समय शत्रुओं को मोहित करके द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर पर आक्रमण किया। (63)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में संकुलयुद्धविषयक बीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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