महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 13 श्लोक 17-29

त्रयोदश (13) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयोदश अध्याय: श्लोक 17-29 का हिन्दी अनुवाद


  • महातेजस्वी पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर सेना में वह शंखध्वनि सुनकर आपकी सेनाओं में भी भाँति-भाँति के बाजे बजने लगे। (17)
  • भारत! तदनन्‍तर आपकी और उनकी सेनाएँ व्‍यूहबद्ध होकर धीरे-धीरे युद्ध के लिये एक-दूसरी के समीप आने लगीं। (18)
  • तदनन्‍तर कौरवों तथा पाण्‍डवों और द्रोणाचार्य तथा धृष्टद्युम्न रोमांचकारी भयंकर युद्ध होने लगा। (19)
  • सृंजय योद्धा उस युद्ध में द्रोणाचार्य की सेना का विनाश करने के लिये बड़े यत्‍न के साथ चेष्‍टा करने लगे, परंतु सफल न हो सके; क्‍योंकि वह सेना आचार्य द्रोण के द्वारा भली-भाँति सुरक्षित थी। (20)
  • इसी प्रकार आपके पुत्र की सेना के उदार महारथी, जो प्रहार करने में कुशल थे, पाण्‍डव सेना को परास्‍त न कर सके; क्‍योंकि किरीटधारी अर्जुन उसकी रक्षा कर रहे थे। (21)
  • जैसे रात में पुष्‍पों से सुशोभित वनश्रेणियाँ प्रसुप्‍त[1] देखी जाती हैं, उसी प्रकार वे सुरक्षित हुई दोनों सेनाएँ आमने-सामने निश्चल भाव से खड़ी थीं। (22)
  • राजन! तदनन्‍तर सुवर्णमय रथ वाले द्रोणाचार्य सूर्य के समान प्रकाशमान आवरणयुक्‍त रथ के द्वारा आगे बढ़कर सेना के प्रमुख भाग में विचरने लगे। (23)
  • द्रोणाचार्य युद्धस्‍थल में केवल रथ के द्वारा उद्यत होकर अकेले ही शीघ्रतापूर्वक अस्‍त्र-शस्‍त्रों का प्रयोग कर रहे थे। उस समय पाण्‍डव तथा सृंजय भय के मारे उन्‍हें अनेक-सा मान रहे थे। (24)
  • महाराज! उनके द्वारा छोड़े हुए भयंकर बाण पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर की सेना को भयभीत करते हुए चारों ओर विचर रहे थे। (25)
  • दोपहर के समय सहस्‍त्रों किरणों से व्‍याप्‍त प्रचण्‍ड तेज वाले भगवान सूर्य जैसे दिखायी देते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी दृष्टिगोचर हो रहे थे। (26)
  • भरतनन्‍दन! जैसे दानवदल क्रोध में भरे हुए देवराज इन्‍द्र की ओर देखने का साहस नहीं करता है, उसी प्रकार पाण्‍डव सेना का कोई भी वीर समरभूमि में द्रोणाचार्य की ओर आँख उठाकर देख न सका। (27)
  • इस प्रकार प्रतापी द्रोणाचार्य ने पाण्‍डव सेना को मोहित करके पैने बाणों द्वारा तुरंत ही धृष्टद्युम्न की सेना का संहार आरम्‍भ कर दिया। (28)
  • उन्‍होंने अपने सीधे जाने वाले बाणों द्वारा सम्‍पूर्ण दिशाओं को अवरुद्ध करके आकाश को भी आच्‍छादित कर दिया और जहाँ धृष्‍टद्युम्न खड़ा था, वहीं वे पाण्‍डव सेना का मर्दन करने लगे। (29)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत द्रोणाभिषेक पर्व में अर्जुन के द्वारा युधिष्ठिर को आश्वासनविषयक तेरहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सिकुड़े हुए पतों से युक्‍त

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