षट्पंचाशदधिकशततम (156) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: षट्पंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 182-190 का हिन्दी अनुवाद
आर्य! इसके बाद द्रोणकुमार ने राजा श्रुतायुध को भी यमलोक पहुँचा दिया। फिर दूसरे तीन तीखे और सुन्दर पंखवाले बाणों द्वारा हेमशाली, पृषध्र और चन्द्रसेन का भी वध कर डाला। तदनन्तर दस बाणों से उसने राजा कुन्तिभोज के दस पुत्रों को काल के गाल में डाल दिया। इसके बाद अत्यन्त क्रोध में भरे हुए अश्वत्थामा ने एक सीधे जाने वाले अत्यन्त भयंकर एवं उत्तम बाण का संधान करके धनुष को कान तक खींचकर उसे शीघ्र ही घटोत्कच को लक्ष्य करके छोड़ दिया। वह बाण घोर यमदण्ड के समान था। पृथ्वीपते! वह सुन्दर पंखोवाला महाबाण उस राक्षस का हदय विदीर्ण करके शीघ्र ही पृथ्वी में समा गया। राजेन्द्र! घटोत्कच को मरकर गिरा हुआ जान महारथी धृष्टद्युम्न ने अपने उत्तम रथ को अश्वत्थामा के पास से हटा लिया। नरेश्वर! फिर तो युधिष्ठिर सेना के सभी नरेश युद्ध से विमुख हो गये। उस सेना को परास्त करके वीर द्रोणपुत्र रणभुमि में गर्जना करने लगा। भारत! उस समय सम्पूर्ण प्राणियों में अश्वत्थामा का बड़ा समादर हुआ। आपके पुत्रों ने भी उसका बड़ा सम्मान किया। तदनन्तर सैकड़ों बाणों से शरीर छिन्न-भिन्न हो जाने के कारण मरकर गिरे और मृत्यु को प्राप्त हुए निशाचरों की लाशों से पटी हुई चारों ओर की भूमि पर्वताशिखरो से आच्छादित हुई-सी अत्यन्त भयंकर और दुर्गम प्रतीत होने लगी। उस समय वहाँ सिद्धों, गन्धर्व, पिशाचों, नागों, सुपर्णों, पितरों, पक्षियों, राक्षसों, भूतों, अप्सराओं तथा देवताओं ने भी द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि रात्रियुद्धे षट्पञ्चाशदधिकशततमोऽध्याय: ॥ 56 ॥ इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अंतगर्त घटोत्कचपर्व मे रात्रियुद्धविषयक एक सौ छप्पनवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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