महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 45 श्लोक 19-35

पंचचत्वारिंश (45) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: पंचचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 19-35 का हिन्दी अनुवाद

पूर्वकाल में समस्त देशों में प्रचलित सनातन धर्म की जब प्रशंसा की जा रही थी, उस समय ब्रह्मा जी ने पंचनद वासियों के धर्म पर दृष्टिपात करके कहा था कि धिक्कार है इन्हें! संस्कारहीन, जारज और पापकर्मी पंचनदवासियों के धर्म की जब ब्रह्मा जी ने सत्ययुग में भी निन्दा की, तब तुम उसी देश के निवासी होकर जगत् में क्यों धर्मोपदेश करते हो? पितामह ब्रह्मा ने पंचनद निवासियों के आचार-व्यवहार रूपी धर्म का इस प्रकार अनादर किया है। अपने धर्म में तत्पर रहने वाले अन्य देशों की तुलना में उन्होंने इनका आदर नहीं किया। शल्य! इन सब बातों को अच्छी तरह जान लो। अभी इस विषय में तुमसे और कुछ भी बातें बता रहा हूँ, जिन्हें सरोवर में डूबते हुए राक्षस कल्माषपाद ने कहा था। क्षत्रिय का मल है भिक्षावृत्ति, ब्राह्मण का मल है वेद-शास्त्रों के विपरीत आचरण, पृथ्वी के मल हैं बाहीक और स्त्रियों का मल हैं मद्र देश की स्त्रियाँ। उस डूबते हुए राक्षस का किसी राजा ने उद्धार करके उससे कुछ प्रश्न किया। उनके उस प्रश्न के उत्तर में राक्षस ने जो कुछ कहा था, उसे सुनो- मनुष्यों के मल हैं म्लेच्छ, म्लेच्छों के मल हैं शराब बेचने वाले कलाल, कलालों के मल हैं हींजड़े और हींजड़ों के मल हैं राजपुरोहित। राजपुरोहितों के पुरोहित तथा मद्र देश वासियों का जो मल है, वह सब तुम्हें प्राप्त हो, यदि इस सरोवर से तुम मेरा उद्धार न कर दो। जिन पर राक्षसों का उपद्रव है तथा जो विष के प्रभाव से मारे गये हैं, उनके लिये यह उत्तम सिद्ध वाक्य ही राक्षस के प्रभाव का निवारण करने वाला एवं जीवन रक्षक औषध बताया गया है।

पांचाल देश के लोग वेदोक्त धर्म का आश्रय लेते हैं, कुरु देश के निवासी धर्मानुकूल कार्य करते हैं, मत्स्य देश के लोग सत्य बोलते और शूरसेन निवासी यज्ञ करते हैं। पूर्व देश के लोग दास कर्म करने वाले, दक्षिण के निवासी वृषल, बाहीक देश के लोग चोर और सौराष्ट्र निवासी वर्णसंकर होते हैं कृतघ्नता, दूसरों के धन का अपहरण, मदिरापान, गुरुपत्नी गमन, कटु वचन का प्रयोग, गोवध, रात के समय घर से बाहर घूमना और दूसरों के वस्त्र का उपयोग करना- ये सब जिनके धर्म हैं, उन आरट्टों और पंचनद वासियों के लिये अधर्म नाम की कोई वस्तु है ही नहीं। उन्हें धिक्कार है। पांचाल, कौरव, नैमिष और मत्स्य देशों के निवासी धर्म को जानते हैं। उत्तर, अंग तथा मगध देशों के वृद्ध पुरुष शास्त्रोक्त धर्मों का आश्रय लेकर जीवन निर्वाह करते हैं। अग्नि आदि देवता पूर्व दिशा का आश्रय लेकर रहते हैं, पितर पुण्यकर्मा यमराज के द्वारा सुरक्षित दक्षिण दिशा में निवास करते हैं, बलवान वरुण देवताओं का पालन करते हुए पश्चिम दिशा की रक्षा में तत्पर रहते हैं और भगवान सोम ब्राह्मणों के साथ उत्तर दिशा की रक्षा करते हैं। महाराज! राक्षस, पिशाच और गुह्यक- ये गिरिराज हिमालय तथा गन्धमादन पर्वत की रक्षा करते हैं और अविनाशी एवं सर्वव्यापी भगवान जनार्दन समस्त प्राणियों का पालन करते हैं (परंतु बाहीक देश पर किसी भी देवता का विशेष अनुग्रह नहीं है)। मगध देश के लोग इशारों से ही सब बात समझ लेते हैं, कोसल निवासी नेत्रों की भावभंगी से मन का भाव जान लेते हैं, कुरु तथा पांचाल देश के लोग आधी बात कहने पर ही पूरी बात समझ लेते हैं, शाल्व देश के निवासी पूरी बात कह देने पर उसे समझ पाते हैं, परंतु शिवि देश के लोगों की भाँति पर्वतीय प्रान्तों के निवासी इन सबसे विलक्षण होते हैं। वे पूरी बात कहने पर भी नहीं समझ पाते।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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